दो अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी जीवनभर देशवासियों के लिए आदर्श नायक बने रहे। देश के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अविस्मरणीय योगदान से पूरी दुनिया सुपरिचित है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक महात्मा गांधी की मंगलवार को 76वीं पुण्यतिथि है। उनकी 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अहिंसा की राह पर चलते हुए भारत को ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले गांधी जी ने पूरी दुनिया को अपने विचारों से प्रभावित किया। अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने कई किताबें लिखीं, जो हमें आज भी जीवन की नई राह दिखाती हैं। सही मायनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश के करोड़ों युवाओं के पथ प्रदर्शक हैं। उनके जीवन के तीन महत्वपूर्ण सूत्र थे, जिनमें पहला था-सामाजिक गंदगी दूर करने के लिए झाडू का सहारा। दूसरा- जाति-पाति और धर्म के बंधन से ऊपर उठकर सामूहिक प्रार्थना को बल देना। तीसरा चरखा- जो आगे चलकर आत्मनिर्भरता और एकता का प्रतीक माना गया।
गांधी जी प्रायः कहा करते थे कि प्रसन्नता ही एकमात्र ऐसा इत्र है, जिसे आप दूसरों पर डालते हैं तो उसकी कुछ बूंदें आप पर भी गिरती हैं। वे कहते थे कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, उसके चरित्र से होती है। दूसरों की तरक्की में बाधा बनने वालों और नकारात्मक सोच वालों में सकारात्मकता का बीजारोपण करने के उद्देश्य से ही उन्होंने कहा था कि आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को ही अंधा बना देगी। लोगों को समय की महत्ता और समय के सही सदुपयोग के लिए प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा था कि जो व्यक्ति समय को बचाते हैं, वे धन को भी बचाते हैं और इस प्रकार बचाया गया धन भी कमाए गए धन के समान ही महत्वपूर्ण है। वह कहते थे कि आप जो कुछ भी कार्य करते हैं, वह भले ही कम महत्वपूर्ण हो सकता है किन्तु सबसे महत्वपूर्ण यही है कि आप कुछ करें। लोगों को जीवन में हर दिन, हर पल कुछ न कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करते हुए गांधी जी कहा करते थे कि आप ऐसे जिएं, जैसे आपको कल मरना है लेकिन सीखें ऐसे कि आपको हमेशा जीवित रहना है। उनकी बातों का देशवासियों के दिलोदिमाग पर गहरा असर होता था।
महात्मा गांधी के विचारों में ऐसी शक्ति थी कि विरोधी भी उनकी तारीफ किए बगैर नहीं रह सकते थे। ऐसे कई किस्से भी सामने आते हैं, जिससे उनकी ईमानदारी, स्पष्टवादिता, सत्यनिष्ठा और शिष्टता की स्पष्ट झलक मिलती है। एक बार महात्मा गांधी सरोजिनी नायडू के साथ बैडमिंटन खेल रहे थे। सरोजिनी नायडू के दाएं हाथ में चोट लगी थी। यह देखकर गांधी जी ने भी अपने बाएं हाथ में ही रैकेट पकड़ लिया। सरोजिनी नायडू का ध्यान जब इस ओर गया तो वह खिलखिलाकर हंस पड़ीं और कहने लगीं, ‘आपको तो यह भी नहीं पता कि रैकेट कौन से हाथ में पकड़ा जाता है?’ इस पर बापू ने जवाब दिया, ‘आपने भी तो अपने दाएं हाथ में चोट लगी होने के कारण बाएं हाथ में रैकेट पकड़ा हुआ है और मैं किसी की भी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहता। अगर आप मजबूरी के कारण दाएं हाथ से रैकेट पकड़कर नहीं खेल सकती तो मैं अपने दाएं हाथ का फायदा क्यों उठाऊं?’
जिस समय द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, उस समय देश के अधिकांश नेता इस बात के पक्षधर थे कि देश को अंग्रेजों से आजाद कराने का अब बिल्कुल सही मौका है और इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाते हुए उन्हें इस समय देश में बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़ देना चाहिए। दरअसल उन सभी का मानना था कि अंग्रेज सरकार द्वितीय विश्व युद्ध में व्यस्त रहने के कारण भारतवासियों के इस आंदोलन का सामना नहीं कर पाएगी और आखिरकार उसे उनके इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन के समक्ष सिर झुकाना ही पड़ेगा और इस प्रकार अंग्रेजों को भारत को स्वतंत्र करने पर बड़ी आसानी से विवश किया जा सकेगा। जब यही बात गांधी जी के सामने उठाई गई तो उन्होंने अंग्रेजों की मजबूरी से फायदा उठाने से इनकार कर दिया। हालांकि उस दौरान अंग्रेजों के खिलाफ गांधी जी ने आंदोलन तो जरूर चलाया लेकिन उनका वह आंदोलन सामूहिक न होकर व्यक्तिगत स्तर पर किया गया आंदोलन ही था।
(लेखक,स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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