विगत कुछ महीनो से हम सबकी दुनिया बहुत बदल गई है। कोविड-19 का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है और न इंसान रुकने का। रुकी रुकी जिंदगी लोगों को रास नहीं आई और हो गया अनलॉक और इस अनलॉक के आंकड़े देश सहित मेरे राज्य में भी चौंकाने वाले हैं। लगता है सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है। चौक-चौराहों पर जाम लग रहा है। भीड़ संभल नहीं रही है।
कारण, बस बाहर निकलना है। जिन्हें अत्यावश्यक काम है, उनका निकलना समझ में आता है, पर मै सोचती हूं लोग इतने बेपरवाह कैसे हो गए हैं। कठिन समय में अपने देश, राज्य, परिवार के प्रति भी तो हमारी जिम्मेदारी है। हम इसे कैसे भूल जाते हैं? क्या ये जिम्मेदारी प्रशासन की है जो हमें बार बार चेताये कि घर पर रहना है? क्यों हम अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझते? हम अधिकारों की बात हमेशा करते हैं, पर क्या कर्तव्य की बात याद रखते हैं? सोचिएगा जरूर।
इस बीच हमें यह बात याद रखनी होगी कि अभी इस बीमारी का कोई टीका या दवाई नहीं बनी है और जनसंख्या के हिसाब से अगर सोचें तो संक्रमित मरीजों के लिए उतनी सुविधाएं जुटा पाना भी आसान काम नहीं है। तो हमेशा यह ध्यान रखें कि प्रशासन यह कदम इसलिए उठा रही है कि अर्थव्यवस्था धीरे धीरे पटरी पर लौट सके और आप सब आर्थिक रुप से सबल हों। देश पर आर्थिक संकट न आए, पर इसका मतलब यह नहीं कि आपको लॉकडाउन से मुक्ति मिल गई है और आप सडक पर घूमने निकल जाएं? यह एक लंबी लडाई है, जिसका कोई भी चरण छुट्टा छोड़ दें तो पलटवार हो सकता है।
जरूरत है इस संकट के समय सब मिलजुलकर इस विपदा का मुकाबला करें। विश्व की यह पहली लड़ाई है, जिसमें दुश्मन छिपा हुआ है और हमें खुद को, हर एक व्यक्ति को अपने लिए लडाई लड़नी है और देश को सहयोग देना है। सोशल मीडिया से जुड़े हैं तो इसका उपाय लोगों को जागरूक करने मे करें न कि लोगों को डराने में। संक्रमित लोगों में यह भय व्याप्त हो जाता है कि कोरोना हो गया, अब हम नहीं बचेंगे? पर ऐसा बिल्कुल नहीं है।
हमारे राज्य में ठीक होने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। कोरोना को लेकर घबराने की बजाय सतर्क रहने, भीडभाड़ से बचने, सोशियल डिस्टेंसिंग का पालन करने और सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने की जरूरत है। इन सबके साथ एक चीज जो बहुत जरूरी है वह है सकारात्मक रहना। अच्छी बातें करें, अच्छा पढ़ें, अच्छा सोचें। आजकल किसी से फोन से बात करते ही लोग पूछने लगते हैं कि तुम्हारे यहां क्या हालचाल है कोरोना का? अरे! ये क्या है? मैं एक दो लोगों पर झल्ला चूकी हूँ, क्रिकेट मैच देख रहे है क्या, जो स्कोर पूछ रहे हो? लोगों की जिंदगी है। इसे हम यूं ही हल्के में ले रहे हैं, ऐसे लोगों से मैने बात करना ही बंद कर दिया।
हम बात करें रचनात्मकता की, हम बात करें उपलब्धियों की, हम बात करें अपने भविष्य के प्रस्थान की और एक काम करें, लोगों को मदद देने की, उनके चेहरों पर हंसी बिखेरने की। कुछ लोगों के चेहरे हम देखना नहीं चाहते थे, कितना अच्छा है न वो अब मास्क लगाकर हमसे मिलेंगे। रोज-रोज ऑफिस जाकर हम परेशान हो गए थे, घर और परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे। देखिये अब भरपूर समय और साथ है वो भी घर में। जिनके ऑफिस खुल गए हैं वो यह सोचकर खुश हो जाएं कि हमने परिवार के साथ आराम से लंबा समय बिताया जो अविस्मरणीय है।
हर बार गृहणियां बच्चों के साथ छुट्टियों में मायके घूमने जाती थीं। अब ये सोचकर खुश हो जाएं कि इस बार अपनी मां को, बच्चों को अपने हाथों का अचार, चिप्स खिलाऊंगी तो कितने खुश होंगे। दोस्तों दुनिया ने खुशियों की कमी नहीं है। छोटी-छोटी खुशियां जीवन को आनंदित करती हैं। मास्कमय अब भोर है तो क्या हुआ? कल तमस को चीरकर उजास जरूर फैलेगी और मास्क को घर के किसी कोने में जगह नहीं मिलेगी।
-डॉ सुनीता मिश्रा