“हरिशंकर परसाई जाज्वल्यमान कथाकार थे। उन्होंने भारतीय जनतंत्र की समालोचना की। भारतीय आधुनिकता के भीतर जो दरारें पैदा हो रही थी, उन्हें परसाई व मुक्तिबोध ने पहचाना। यह वक्तव्य छत्तीसगढ़ के प्रख्यात आलोचक जयप्रकाश ने आज रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथिका में पहल के तत्वावधान में आयोजित व्याख्यान में दिया। उल्लेखनीय है कि अगस्त माह से हरिशंकर परसाई शताब्दी वर्ष आरंभ हो रहा है। इसी उपलक्ष्य में पहल के तत्वावधान में इस व्याख्यान का आयोजन किया गया था।
जयप्रकाश ने ‘हरिशंकर परसाई की उपस्थिति’ शीर्षक पर व्याख्यान देते हुए कहा कि हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य को सामाजिक प्रयोजन दिया। परसाई जनता से जुड़े लेखक थे इसलिए उनकी जन संवेदना पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। जयप्रकाश ने कहा कि हरिशंकर परसाई वर्तमान के सच्चे लेखक थे। उनका झुकाव व संवेदनशीलता समाज के निचले स्तर के व्यक्ति के साथ थी। पक्षधर हुए बगैर कोई लेखक नहीं हो सकता।
कथाकार राजेन्द्र दानी व कवि-आलोचक राजीव कुमार शुक्ल ने हरिशंकर परसाई के लेखन और व्यक्ति व समाज के अंतर्संबंध पर वक्तव्य देते हुए कहा कि वे हिंदी के सबसे बड़े व पढ़े जाने वाले लेखक हैं। उनका लेखन सर्वकालिक और चेतना जाग्रत करने वाला है। स्वागत वक्तव्य मनोहर बिल्लौरे ने दिया। कार्यक्रम का संचालन आशुतोष द्विवेदी ने और आभार प्रदर्शन शरद उपाध्याय ने किया।