हमारे जीवन को तराशने में जितनी भूमिका पिता की होती है, उतनी अन्य किसी की नहीं होती। हमारी उम्मीदों के क्रम को जोड़ने का अथक प्रयास और पितृ धर्म का अनुपालन करते हुए हमें लक्ष्य तक पहुंचाना ही उनका अंतिम लक्ष्य होता है।
स्वयं की अभिलाषाओं को जड़ीभूत कर, हमारे लिए सदैव तत्पर रहने वाले पिता के व्यक्तित्व को व्यक्त करने के लिए हमारे शब्द अल्प पड़ जायेंगे। संपूर्णता के स्रोतक एवं भावनाओं को आश्रय दे कर उत्साह एवं उमंग की अलक जगाने वाले पिता हमारे जीवन मार्ग में मखमली एहसास की तरह होतें हैं।
पिता अपनी जवानी के सुनहरे दिनों को हमारी आकांक्षाओं की भट्टी में झोंक कर हमें खूबसूरत आकार देने के लिए सारी उमर लगा देंते हैं। पिता अपने संतान की उज्जवल भविष्य के सूत्रधार होते हैं। लेकिन आज के वर्तमान परिस्थिति को देख मन खीझ जाता है।
पिता अपना जीवन और अपनी सम्पूर्ण कमाई संतान की शिक्षा-दीक्षा में लगा देते हैं। शिक्षा पाने के बाद संतान घर परिवार से दूर दूसरे शहर या विदेश में नौकरी करने चली जाती है। पिता अपनी संतान के सुनहरे भविष्य के लिए इस पर भी खुश होते हैं, लेकिन अपना सर्वस्व न्योछावर करने के बाद भी माता-पिता एकांकी जीवन जीने को विवश हो जाते हैं। जबकि जिस प्रकार हमें बाल अवस्था में माता-पिता की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार माता-पिता को भी बुढ़ापे के दिनों में हमारी आवश्यकता होती है।
यहां विडंबना ये है कि दूर जाने वाली संतान एकल परिवार की पक्षधर बन अपने माता-पिता को अपने साथ रखने से भी कतराने लगती है। समझना हमें और आप को है यदि प्रेमपूर्वक माता-पिता को हम साथ रखें तो माता-पिता को अपने जीवन की सांझ अकेले नहीं व्यतीत करनी पड़ेगी और देश समाज में वृद्धआश्रम बनाने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी।
माता-पिता को असहाय और अकेला छोड़कर सोशल मीडिया पर चित्र लगाकर पितृ दिवस या मातृ दिवस मनाने क्या अर्थ। जबकि इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि हमें तो जीवन भर उनका ऋणी बनकर रहना है। जो हमारे जन्मदाता हैं, कर्णधार हैं, उन माता-पिता का किया हम कई जन्मों तक चुकता नहीं कर सकते।
यदि हम वास्तविकता में अपने माता-पिता को खुश रखते हुए, जीवन के निर्णयों में सम्मिलित करतें हैं तो निश्चित ही ये हमारे लिए ही सुखद होगा। क्योंकि जो साहस उनमें है, वो हमारे अंदर अभी पूरी तरह से नहीं है। जीवन की चुनौतियों को पार कर हमें संगठित करना हर पिता के सुख की पराकाष्ठा है, जिसका कोई तुलनात्मक रूप हो ही नहीं सकता।
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश