आशा: सीमा शर्मा ‘तमन्ना’

आज का आधुनिक युग, जी हां दोस्तों! आज का आधुनिक युग। यह आधुनिकता कैसी और किस ओर इंगित करती है? क्या परिभाषा है इस आधुनिकता की? जहां तक मैं समझती हूं आधुनिकता का सही अर्थ वक्त के साथ बदलते प्रगति उपकरणों द्वारा, कार्य कुशलता, शिक्षण-प्रशिक्षण एवं कार्य व्यवहार द्वारा नवीनता को प्राप्त करते हुए प्रगति पथ की ओर अग्रसर होना है। किंतु! यह आधुनिक सोच प्रत्येक मनुष्य के लिए एक भिन्नता को लिए हुए हैं। वह इसके सही अर्थ को समझने की अपेक्षा प्रगति के स्थान पर यह बात इसलिए कही जा रही है, क्योंकि प्रगति वह केवल व्यापार उद्योग धंधों एवं अपने कार्यों में ना कर अपने व्यक्तिगत जीवन को भी इसके कारण  प्रभावित कर रहा है।

यदि मैं इसकी वास्तविकता के धरातल पर ले जाकर इसको परिभाषित करूं तो मैं इसे आधुनिक युग नहीं मशीनी युग कहकर संबोधित करना ज्यादा उचित समझती हूं, क्योंकि आज प्रत्येक व्यक्ति मशीन बना हुआ है। उसने अपनी सोच अपने कार्य व्यवहार, रिश्ते नातों को भी उसी के अनुसार ढाल दिया है, जिसका परिणाम अवसाद, दुख, तनाव आदि देखने को मिलते हैं।

मैं पूछना चाहती हूं, क्या यही है आधुनिकता? यही है प्रगति का मार्ग?

माफ कीजिएगा, क्योंकि प्रगति एवं विकास कुछ समय तक तो उन रास्तों पर चलकर ह्रदय को आनंदित करते हैं किंतु जल्द ही वे कुंठा एवं विनाश का भी कारण बन जाते हैं। इसी बात का प्रमाण प्रस्तुत करती यह लघु कथा आशा करती हूं आप सभी को भावविभोर करने में सफलता प्रदान करें।

एक अंधेरे कमरे मे चार मोमबत्तियां चल रही थी। अचानक ही चारों आपस में अपने दिल का हाल दूसरे को सुनाने लगीं।

उनमें से पहली मोमबत्ती बोली- मैं शांति हूं। कहने को तो मेरा नाम शांति है, किंतु आज के इस आधुनिक युग में लोगों की सोच, चारों तरफ मची भगदड़ चाहे दिन हो या रात इन सभी चीजों को देख मुझे लगता है कि किसी को भी मेरी जरूरत नहीं है और जहां जरूरत ना हो वहां में रहकर क्या करूंगी मैं ऐसी जगह नहीं रह सकती। वह बहुत दुखी होती है और बुझ जाती है।

यह देख दूसरी मोमबत्ती बोली- मेरा नाम विश्वास है। मैं भी इसलिए परेशान हूं कि चारों तरफ झूठ फरेब छल कपट का आवरण इतना मजबूत हो गया है कि ना तो इंसान को यह काम कर  पछतावा होता ना ही अफसोस होता है। मेरी भी किसी को अब जरूरत नहीं रह गई है। मैं भी रह कर क्या करूंगी। दुखी होकर वह दूसरी मोमबत्ती भी बुझ जाती है।

तीसरी मोमबत्ती बोली- मैं प्रेम हूं। एक समय था जब लोग मुझे अपने दिलों में जलाए रखते थे और जन्मों-जन्मों तक जलाए रखने के कसमें वादे करते थे खुश रहते थे, दुहाई देते थे मेरे नाम की। मैं भी हमेशा जली रहना चाहती हूं, सभी के दिलों में किंतु! क्या करूं? आज मेरे लिए किसी के पास भी समय नहीं है मेरा नाम लेकर लोग झूठ और दिखावा करते हैं करने की बात तो बहुत दूर। मुझे यह सब देख बहुत दुख होता है इसीलिए मेरा बुझ जाना ही बेहतर है। इतना कहकर वह तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।

तभी एक छोटा सा बच्चा उस कमरे में आता है और उन चारों मोमबत्तियां में से तीन को बुझी देख कर बहुत दुखी होता है और रोने लगता है। उस बच्चे को रोता देख कर चौथी मोमबत्ती जो अब तक जल रही थी, उस बच्चे की ओर देखती है और बोलती है- रोओ मत। देखो! मेरा नाम आशा है मैं जल रही हूं और देखो! जब तक मैं हूं तुम इन सभी बुझी हुई मोमबत्तियां को दोबारा जला सकते हो। यह बात सुनकर उस नन्हे से बच्चे की आंखों में ख़ुशी की किरने चमक उठीं और उसने उस आशा रूपी मोमबत्ती से शांति, विश्वास एवं प्रेम रूपी मोमबत्तियां को दोबारा से जलाकर कमरे में चारों को प्रकाश कर दिया।

दोस्तों! आधुनिकता का अर्थ यह नहीं कि हम प्रगति पथ की सफलता हेतु अपने रिश्ते नाते सगे संबंधी अपने साथियों को इस कदर नजरअंदाज कर दें कि हमारे पास किसी के लिए भी वक्त ना हो हम आगे निकलने की होड़ में इंसानियत को भूल जाएं, सही मार्ग अपनाने के स्थान पर झूठ छल कपट आदि कांटो भरा रास्ता अपना लें।

सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश