Wednesday, October 30, 2024

भौतिकता में गुम होती दीपावली की मिठास: किरन जादौन ‘प्राची’

किरन जादौन ‘प्राची’
शिक्षिका
करौली, राजस्थान

हमारा देश त्योहारों एवं उत्सवों का देश है। जहां वर्ष भर देश के किसी न किसी भाग में कोई ना कोई उत्सव एवं पर्व चलता रहता है। यही हमारे देश की वविविधता में एकता और सांस्कृतिक एकरूपता का प्रतीक है। इन्हीं त्योहारों में से एक भारतवर्ष का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली है। जिससे देश का प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म का हो किसी न किसी रूप में इसे अवश्य जुड़ा रहता है।

दीपावली मनाने के पीछे बहुत सारी मान्यताएं हैं। जिनमें सबसे प्रमुख है भगवान राम का 14 वर्ष के वनवास के बाद इस दिन अयोध्या में वापस लौट कर आना और अयोध्या वासियों का इस खुशी में पूरे नगर में घी के दीपक जलाना।

वैसे भी हिंदू धर्म में दीप प्रज्वलन सौभाग्य, समृद्धि और उन्नति का प्रतीक माना जाता है और शुभ माना जाता है। जिसके बिना कोई भी धार्मिक कृत्य प्रारंभ ही नहीं होता। दीपावली के साथ एक अन्य मान्यता है कि धनतेरस के दिन धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। साथ ही दीपावली के दिन धन का स्वर्ण कलश लेकर लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी। उसी उपलक्ष्य में दीपावली की रात लक्ष्मी जी का पूजन भी किया जाता है।

भारतीय उपमहाद्वीप में बारिश के चार महीना बाद दीपावली आती है। इसलिए इस त्यौहार के बहाने बारिश के बाद साफ सफाई भी कर ली जाती है। ऐसे त्योहार हमारे जीवन में एकरसता को तोड़कर उमंग और उत्साह बढ़ाते रहते हैं। किंतु समय परिवर्तनशील है और समय के साथ हर चीज बदलती है।

इस आधुनिक परिवर्तन का प्रभाव हमारे समाज एवं त्योहार पर भी पड़ा है। दीपावली भी अपने धार्मिक स्वरूप से ज्यादा भौतिकता का आवरण लेती जा रही है। पहले जहां धार्मिक आयोजन एवं पूजा महत्वपूर्ण थी, वहां अब समय के साथ नए कपड़े मिठाइयां भौतिक सुख सुविधा के नए से नए मॉडल के समान कार-बाइक आदि खरीदने पर जोर दिया जाता है। बच्चों के लिए यह त्यौहार पटाखे चलाने और नए कपड़े पहनने के अवसर के रूप में अधिक महत्व रखने लगा है।

पहले जहां दीपावली के दिन उसके अगले दिन एक दूसरे के घर जाकर दीपोत्सव की शुभकामनाएं दी जाती थी और एक दूसरे के यहां मिठाइयां पहुंचाई जाती थी और यह सब अब मोबाइल से सोशल मीडिया के जरिए से संदेश भेजकर औपचारिकताएं पूरी कर ली जाती हैं। बहुत पुरानी बात नहीं है जब नौकरीपेशा लोग और बाहर पढ़ रहे विद्यार्थी महीना पहले से दीपावली पर अपने गांव घर जाकर अपने दादा दादी माता-पिता और भाई बहनों से मिलने की आज की तैयारी में उल्टी गिनती शुरू कर देते थे। अब यह सब गए जमाने की बात हो गई।

अब तो लोग अपने घर की सुरक्षा, छुट्टी ना मिलने के कारण, बच्चों के ट्यूशन के बहाने घर परिवार में गांव में जाना ही नहीं चाहते। हमारे देश के हर प्रांत में सैकड़ो तरह की मिठाइयां आज भी बनती हैं, लेकिन अब स्वास्थ्य के नाम पर हम इनसे भी दूर होते जा रहे हैं और रही सही कसर कुछ तो आज की विज्ञापन कंपनियों के विज्ञापन पूरी कर रहे हैं और बाकी की कसर हम आधुनिक देखने की चक्कर में पूरी कर रहे हैं।

जैसा मैंने ऊपर कहा कि उसे देश में जहां की विशेषता ही सैकड़ो तरह की मिठाइयां हैं वहां पर कंपनियों के विज्ञापन कि आओ त्यौहार पर एक चॉकलेट हो जाए, एक मजाक से ज्यादा क्या होगा। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि धनाढ्य वर्ग अपने आप को अधिक आधुनिक दिखाने के चक्कर में यही सब अपना रहा है।

अभी भी समय है जब हम अपने त्योहारों का मूल स्वरूप लौटा सकते हैं। आने वाली पीढियां को अपने सांस्कृतिक मूल्यों से अवगत करा सकते हैं। आइए इस दीपावली पर संकल्प करें कि हम अपने परिवार और समाज से जुड़ाव रखेंगे और त्योहारों को धार्मिक स्वरूप से ही मनाएंगे ना कि दिखावा करने के अवसर के रूप में।

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