पहल व अन्विति के संयुक्त तत्वावधान में जबलपुर के रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथिका में मुक्तिबोध की स्मृति में व्याख्यान और कविता केन्द्रित कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में दूरदर्शन व आकाशवाणी नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक व प्रख्यात कवि लीलाधर मंडलोई ने मुक्तिबोध की गद्य रचनाओं पर व्याख्यान देते हुए कहा कि मुक्तिबोध अपनी कविताओं में जिस प्रकार मोड़ लेते हैं, वैसे ही वे अपनी कहानियों में जाते हैं।
उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की रचनाएं ज्ञात से अज्ञात की यात्रा है। मुक्तिबोध का व्यक्तित्व सुदढ़ है और वे हार न मानने वाले व्यक्ति व साहित्यकार रहे हैं। लेखन की निर्भयता उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। मुक्तिबोध रंगों से अपनी भावना व विचार को व्यक्त करते थे। काला व धूसर रंग उनकी रचनाओं में उभरता है।
लीलाधर मंडलोई ने कहा कि मुक्तिबोध बड़े विचारकों से गुजरते हुए नया रास्ता खोजना चाहते थे। मुक्तिबोध विज्ञान खासतौर से भौतिक शास्त्र में भी प्रविष्ट हो कर जीवन का रास्ता खोजते थे। वे कहीं रूकना व थमना नहीं चाहते थे। मंडलोई ने कहा कि मुक्तिबोध को उनकी रचनात्मक बैचेनी ने बचाए रखा। मुक्तिबोध ने प्रतीक, मिथक व रूपकों से लोक शिक्षक की भूमिका निभाई।
दूसरे चरण के कार्यक्रम में मुक्तिबोध की कविता शीर्षक के अंतर्गत मुक्तिबोध की किसी एक कविता पर कवि की टिप्पणी और कविता पाठ में जबलपुर के राजीव कुमार शुक्ल, भारती वत्स, विवेक चतुर्वेदी व भोपाल की श्रद्धा श्रीवास्तव की सहभागिता रही। पूजा केवट ने मुक्तिबोध की कविताओं का पाठ किया। संचालन रंगकर्मी आशुतोष द्विवेदी और आभार प्रदर्शन अन्विति के संपादक राजेन्द्र दानी ने किया।