चाहे दवा की बात हो या वैक्सीन बनाने की बात, इनमें से अभी तक सफल रूप से कुछ भी सामने नहीं आया है। हालांकि अभी तक वैज्ञानिक अपने शोध कार्य कर रहे हैं। क्योंकि हमें इसके बारे में अभी तक कुछ पता ही नहीं है, फिर भी कोरोना वायरस को लेकर भारत की रणनीति और उसकी सफलता के क्रमिक क़दमों की दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है। लॉकडाउन में लाखों लोगों की रक्षा हुई है। जीवन कितना कीमती है, ऐसे में जीवन की रक्षा यदि बिना किसी लागत के हो सके तो यह उपलब्धि सबसे बड़ी मानवीय उपलब्धि मानी जाएगी और इस संकट की घड़ी में मानवता को मिला एक सुंदर उपहार ही माना जाएगा।
लॉकडाउन की अवधि आगे भी बढ़ाई जा सकती है। इस अदृश्य विषाणु की उपस्थिति में लगभग हर बात अनुमान आधारित हो गई है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी हो सकता है कि सोशल डिस्टेंसिंग का नियम हमें अपनाना पड़े। क्योंकि हम सबने यह परिवार, यह समाज, अपनी हर व्यवस्था अपनी खुशी के लिए ही बनाया है, अपनी जान गंवाने के लिए नहीं। तभी शुरुआती दो लॉकडाउन में “जान है तो जहान है” को अपनाने की बात बताई गई और फिर बाद के दो लॉकडाउन में यह “जान भी जहान भी” में तब्दील हो गया। मतलब हमारी जान, पूर्णबंदी और आंशिक बंदी दोनों ही परिस्थितियों में कॉमन है, जान सर्वोपरि है। अब तय है कि लॉकडाउन से बाहर निकलने का समय है। अब कहीं और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। सब बातों से पुष्टि हो गई है कि हमें लंबे समय तक कोरोना वायरस के साथ ही जीना है। इसलिए डरने की बजाय अनुशासन में रहते हुए नियमों का अनुपालन करना है और आगे बढ़ने की जिम्मेदारी उठाना है। सामुदायिक दूरी होते हुए भी हमारा सामूहिक प्रयास ही हमें इस विपदा के पार ले जाएगा।
इसी सिलसिले में दिल्ली एनसीआर के एक नामी अस्पताल में कार्यरत प्रतिष्ठित डॉक्टर, डॉ प्रशांत अरूण से जब मित्रवत बात होती है, तो दोस्तों के साथ ग्रुप डिस्कशन में उनका साफ कहना होता है कि कोरोना हर जगह मौजूद है, अगले कई महीनों तक ऐसी ही स्थिति रहेने वाली है, यह हमारे साथ ही है। इतना सुनते ही जब दोस्त इसे हल्के में लेते हैं तो आप भी हल्के-फुल्के अंदाज में समझाने की कोशिश करते हैं कि हां चाहे कोरोना की जितनी भी बातें करो, मस्ती करो, हेट करो, लाइक करो, पर अपने फेफड़ों में जगह मत देना, मैं तुम्हें वॉर्निंग दे रहा हूं। फिर गंभीर होते हुए इससे बचने के उपाय भी शेयर कर देते हैं। अपनी जान हथेली पर रखकर सेवा देने वाले डॉक्टर का अपने दोस्तों के प्रति इतना फिक्रमंद होना सचमुच भावुक कर जाता है।
उनका संकेत साफ था कि अब हमें ज्यादा और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि इससे पहले हम घर में थे सुरक्षित थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कोरोना पीरियड में अपनी सेवा देते हुए “मैनेजमेंट ऑफ़ कोविड19”, “वायरोलॉजी इन क्रिटिकल केयर” जैसे अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर ऑनलाइन प्रमाणपत्र पाने वाले डॉक्टर प्रशांत अरूण जिन्हें हर तथ्य वैज्ञानिक रूप से पता है, जब उनका सीधा सीधा संदेश है “सतर्क रहिए सुरक्षित रहिए” फिर तो हमें भी कोई संदेह ही नहीं रह जाना चाहिए कि क्या करना है क्या नहीं।
एक जानकारी के अनुसार वायरस का संक्रमण फैलने के बाद अगर उस वायरस को नहीं रोका जा सकता है तो अनुमानतः वह वायरस एक साल के अंदर दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर देता है और इस स्थिति में उस आबादी के अंदर अपने आप सामूहिक रूप से हर्ड इम्युनिटी आ जाती है, जो वायरस संक्रमण के आगामी फैलाव को रोक देती है। लेकिन इसका दुखद पहलू यह है कि इस दौरान उस आबादी को बहुत बड़े स्तर पर हानि होने की संभावना बढ़ जाती है। नुकसान की इसी आशंका से बचने के लिए कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे से निपटने के लिए दुनिया भर में कई देशों में नेशन लॉक डाउन लगा दिया, ताकि वायरस अपनी श्रृंखला को बहुत बड़ी मात्रा में नहीं बढ़ा सके। और जब लगातार क्रमबार लॉकडाउन के बावजूद अगर वायरस का संक्रमण क्रमिक रूप से होता ही रहता है तो बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आते रहते हैं। और बहुत बड़ी संख्या में वायरस से लड़ पाने में कामयाब भी हो जाते हैं। तब इसका सकारात्मक पहलू यह होता है कि इस दौरान उस आबादी के कई व्यक्ति सामूहिक रूप से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के बल पर इस संक्रमण को हरा देते हैं, जिसे संक्रमण के प्रति इम्यून होना कहा जाता है। और इस स्थिति को हर्ड इम्यूनिटी की संज्ञा दी जाती है। जब इम्यून लोगों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है तो वायरस अपना संक्रमण फैला पाने में असमर्थ हो जाता है। जब हम किसी बीमारी से ठीक होते हैं तो उस बीमारी की इम्युनोलॉजिकल मेमोरी बनती है, जो हमारे शरीर को भविष्य में उसी बीमारी से लड़ने में मदद करती है। और लगभग यही काम वैक्सीन भी करता है, क्योंकि कोई भी वैक्सीन किसी भी महामारी संक्रमण से लड़ने के लिए लोगों में हर्ड इम्युनिटी ही विकसित करता है। अच्छी बात यह है कि हर्ड इम्युनिटी ट्रांसमिशन के साइकिल को तोड़ती है।
मतलब साफ है कि कोरोना वायरस हर जगह है। हमें कोरोना के साथ ही जीना है। लॉकडाउन में “आंशिक लॉकडाउन” हमें छूट देने की दिशा में उठाया गया कदम है। इसलिए सोचना भी हमें ही पड़ेगा कि हमें क्या करना है क्या नहीं, किन किन गतिविधियों का चयन करना है और किनका नहीं। हम सबको समझना होगा कि यह छूट इसलिए नहीं मिली कि हमने वायरस पर काबू पा लिया है बल्कि यह तो अर्थव्यवस्था सहित और भी कई कारणों से किया गया फैसला है। ऐसे में हमारी समझदारी ही हमारा साथ देगी। घबराने की जरूरत नहीं है, जरूरत है और अधिक सतर्क रहने की, जरुरत है समझदारी की पर्याप्त दूरी बनाए रखने की।
-सुजाता प्रसाद