पंकज स्वामी
(भोपाल में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के गठन की बात से जबलपुर व महाकोशल के खिलाड़ी, खेल संगठन और खेल प्रेमी उद्वेलित हैं। संभवत: जबलपुर का खेल इतिहास पूरे मध्यप्रदेश में सबसे पुराना है। जबलपुर को एक समय मध्यप्रदेश की खेलधानी का तमगा हासिल था। यहां सभी खेलों के मुख्यालय थे। जबलपुर से ही खेलों की शुरुआत हुई और उनका पूरे मध्यप्रदेश में प्रसार हुआ। जबलपुर का खेल इतिहास सिरीज का यह प्रथम भाग है। सभी खेल के इतिहास को प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा।)
जबलपुर भारत के सबसे प्रमुख और सबसे प्राचीन खेल केन्द्रों में से एक है। जबलपुर 150 वर्षों से अधिक वर्षों से एक बड़ा सैन्य केन्द्र रहा है और सेना के लोगों के साथ जुड़ाव के कारण यहां के नागरिक भी खेल में रूचि रखते थे। खासकर हॉकी और फुटबाल के खेल जिसमें शहर का मानक बहुत ऊंचा रहा है। ब्रिटिश सेना इस प्रकार जबलपुर में पश्चिमी खेलों की अग्रणी थी। फॉक्स सोरेंजवे आईसीएस 1901 में जबलपुर के कमिश्नर, पुलिस अधिकारी सर सीसी चीथम और अन्य जैसे नागरिक अधिकारियों ने खेलों को प्रोत्साहन व संरक्षण दिया।
शहर में कॉलेज संस्थानों ने खेलों को बढ़ावा देने में बहुत बड़ा हाथ है। क्रिकेट 1873 में खेला जाने लगा था। जब गर्वमेंट कॉलेज सागर से जबलपुर स्थानांतरित हुआ तब मिलौनीगंज में बच्चों के अस्पताल के सामने प्लाट को क्रिकेट मैदान के रूप में तैयार किया गया और जब कॉलेज 1905 में लाखखाना बिल्डिंग में स्थानांतरित हुआ, (अब मॉडल स्कूल के अधिपत्य में) तब ब्यौहार बाग के पास की ज़मीन को खेल के मैदान के रूप में इस्तेमाल किया गया। हॉकी की शुरुआत प्राचार्य सर हेनरी शार्प ने 1894 में की। उन्होंने 1896 में ए. मोनरो के मार्गदर्शन में अंतर विद्यालय और कॉलेज खेलों की एक प्रणाली की शुरुआत की। 1902 में टेनिस की शुरुआत हुई। 1910 में जबलपुर जिम्नेस्टिक का प्रमुख केन्द्र बना। दो विद्यार्थियों ने जिम्नेस्टिक में फर्नाडिज मेडल जीता। वर्ष 1923 में नागपुर यूनिवर्सिटी बनने के बाद जबलपुर में अंतर महाविद्यालयीन खेलों की शुरुआत हुई। वालीबाल की शुरुआत 1924 में हुई। अट्या-पाट्या जैसे भारतीय खेल 1916 से ही रॉबर्टसन कॉलेज में फल-फूल रहे थे। राबर्टसन कॉलेज एसी सेल्स व डब्लयूएस रोलेंड ने वर्ष 1911 से 1930 के तक खेलों को खूब बढ़ावा दिया। उस समय स्पेंस ट्रेनिंग कॉलेज (अब पीएसएम) और हितकारिणी कॉलेज खेलों में प्रमुख स्थान रखते थे। वर्ष 1957 में जबलपुर यूनिवर्सिटी बनने के बाद यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स कमेटी और बाद में बोर्ड ऑफ फिजिकल वेल्फेयर द्वारा 20 कॉलेजों में खेल आयोजन को गति दी गई। इसके बाद जबलपुर में इंटर यूनिवर्सिटी खेल का आयोजन होने लगा और जबलपुर यूनिवर्सिटी की टीम बाहर आयोजित होने वाली इंटर यूनिवर्सिटी खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगी। इस प्रकार के आयोजन से जबलपुर में खेलों का स्तर सुधरने लगा। डा. आरएल गुप्ता, बीएस (भरत सहाय) वर्मा और सीएस (छोटे सिंह) राठौर ने विश्वविद्यालय में खेलों के आयोजन और उन्हें बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जेईएए-सेना और महाविद्यालयों द्वारा शुरू किए गए अच्छे कार्यों को बाद में विद्यालयों द्वारा खेलों को पानी व खाद दिया गया। स्कूल शिक्षा विभाग ने वर्ष 1907 में JEAA (जेईएए-जबलपुर शैक्षिक एथलेटिक एसोसिएशन) का गठन किया, ताकि जबलपुर के भारतीय और यूरोपीय विद्यालयों के लिए खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जा सकें, पहले ये गतिविधियां फील्ड गेम्स एसोसिएशन द्वारा संचालित की जाती थीं। जेईएए के संस्थापक सदस्यों में एसी सेल्स, जीसी रोजर्स, आरएम स्पेंस, केके बर्नाड और लज्जा शंकर झा शामिल थे। वर्ष 1914 में जेईएए ने क्रिकेट, हॉकी व फुटबाल की और वर्ष 1923 में वार्षिक एथलेटिक्स मीट की शुरुआत की। हितकारिणी, अंजुमन, सीएमएस, मॉडल, क्राइस्ट चर्च और सेंट अलॉयशियस स्कूल प्रमुख खेलों की नर्सरी बनीं। जेईएए संभागीय टीम को ऊर्जा प्रदान करता था और बाद में ये खिलाड़ी राज्य और अखिल भारतीय स्तर पर चमकते थे। 33 से अधिक ट्रॉफियां हैं। अन्य खेल संगठनों का विकास और जबलपुर में ओलंपिक एसोसिएशन की स्थापना जेईए का स्वाभाविक परिणाम है।
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