नहाय-खाय से हुआ लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का आरंभ

लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का आरंभ आज सोमवार से नहाए-खाए के साथ हो गया है। चार दिवसीय महापर्व के पहले दिन पूरे बिहार में कद्दू-भात खाने की परंपरा है। इस दौरान सबसे पहले छठ व्रती भगवान सूर्य का स्मरण कर भोग लगाते हैं, इसके बाद ही अन्य लोग इसका सेवन करते हैं।

इस दिन छठ व्रती बड़ी संख्या में गंगा स्नान कर इस व्रत का शुभारंभ करते है। इस दौरान मिट्टी के बरतन और चूल्हे का बड़ा महत्व होता है। गेहूं धोकर पूरी पवित्रता के साथ उसे सुखाया जाता है, फिर जाते में उस गेहूं को पीसा जाता है। उसी आटे का पकवान बनाकर भगवान सूर्य को अर्पित किया जाता है।

आज से आरंभ हुये छठ पूजा के दूसरे दिन यानि कल 9 नवंबर को खरना होगा। इस दिन छठ व्रती के साथ पूरा परिवार दूध-भात, गुड़ और केले का सेवन करते हैं। इसके बाद 10 नवंबर को अस्ताचल सूर्यदेव को पहले अर्घ्य दिया जाता है। इसके अगले दिन यानी 11 नवंबर को सुबह उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व का समापन हो जाता है।

छठ पूजा में व्रती महिलाओं को पानी में खड़ा होकर ही सूर्यदेव को अर्घ्य देना होता है। छठ पर्व में सूर्यदेव के साथ ही छठी मईया की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि छठ का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। ऐसा विश्वास है कि सच्चे मन से छठ पूजा करने से जो भी मनोकामना होती है वह छठी मैया जरूर पूरी करती हैं। अगर संतान से कष्ट हो तो भी ये व्रत लाभदायक होता है। इतना ही नहीं कहा जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति खराब हो अथवा राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को जरूर रखना चाहिए।