मकर संक्रांति पर पुण्यकाल में दान का है विशेष महत्व: पं अनिल कुमार पाण्डेय

मकर संक्रांति को लेकर इस वर्ष पंचांगों में भेद है। पिछले वर्षों पर नजर डालें तो वर्ष 2001, 2002, 2005, 2006, 2009, 2010, 2013, 2004 और 2021 में 14 जनवरी को पुण्य काल होने के कारण मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई गई। वहीं वर्ष 2003, 2004, 2007, 2008, 2011, 2012, 2014, 2015, 2018, 2019 और 2020 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया गया। परंतु इस वर्ष कुछ पंचांग 14 जनवरी को और कुछ पंचांग 15 जनवरी को मकर संक्रांति का त्यौहार मान रहे हैं।

पं अनिल कुमार पाण्डेय के अनुसार इस वर्ष अलग-अलग पंचांगों में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को लेकर असमंजस की स्थिति है। इस स्थिति में आप अपने परिचित जानकार पंडित से पूछकर संक्रांति मनाए। कुछ पंचांगों में मकर संक्रांति का पुण्यकाल 14 जनवरी बताया गया है, वहीं कुछ पंचांगों में 15 जनवरी को पुण्यकाल की बात कही गई है। अगर सभी पंचांगों के आधार पर देखा जाए तो मकर संक्रांति 14 एवं 15 जनवरी दोनों ही दिन पड़ रही है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से लेकर पुण्य काल समाप्त होने तक के बीच में स्नान पूजा और दान का महत्व है।

मकर संक्रांति पूरे भारतवर्ष में विभिन्न नामों से मनाई जाती है। उत्तरी भारत में इसे मकर संक्रांति या संक्रांति कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल तिरुनल कहते हैं। गुजरात में से उत्तरायण कहते हैं। जम्मू में इसे उत्तरण कहते हैं। कश्मीर घाटी में से शिशुरू संक्रांत कहते हैं। हिमाचल प्रदेश और पंजाब में माघी कहते हैं। असम में इसे बिहु कहा जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी का त्यौहार कहते हैं। बांग्लादेश में से पोष संक्रांति नेपाल में खिचड़ी संक्रांति थाईलैंड में सोंगकरन, लाओस में पिमालाओ और श्रीलंका में पोंगल कहते हैं।

मकर संक्रांति के दिन कई घटनाएं होती हैं-

1- सूर्य धनु राशि में से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

2- सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं।

3- दिन के बढ़ने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है।

4- देवताओं के दिन और राक्षसों की रात प्रारंभ हो जाती है।

5- खरमास समाप्त हो जाता है और सभी शुभ कार्य जैसे शादी ब्याह मुंडन जनेऊ नामकरण प्रारंभ हो जाते हैं

अधिकांश स्थानों पर मकर संक्रांति पर खाने की विशेष परंपराएं हैं। जैसे कि कुछ स्थानों पर तिल और गुड़ के पकवान बनाए जाते हैं। कहीं पर तिल और गुड़ के लड्डू बनाए जाते हैं। कुछ स्थानों पर खिचड़ी बनाकर खाई जाती है। जाड़े के दिनों में शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गुड़ और तिल में गर्मी की मात्रा ज्यादा होती है। अतः मकर संक्रांति को गुड़ और तिल का खाना आवश्यक बताया गया है ।

मकर संक्रांति के दिन अधिकांश स्थानों पर पतंग उड़ाने की प्रथा है। इसके अलावा कुश्ती की प्रतियोगिताएं भी विभिन्न स्थानों पर आयोजित की जाती हैं। पंजाब में मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के 1 दिन पहले जब सूरज ढल जाता है तब बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। लोग सज धज कर अलाव के पास पहुंचते हैं। भांगड़ा नृत्य करते हैं और अग्नि में मेवा तेल गजक आज की आदि का हवन करते हैं तथा प्रसाद वितरण होता है।

मकर संक्रांति पर नदियों के किनारे बड़े बड़े मेले लगते हैं, जैसे कि इलाहाबाद प्रयाग में लगने वाला माघ मेला बंगाल में लगने वाला गंगासागर का मेला। मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति के दिन नर्मदा जी के तट पर भी कई स्थानों पर मेले लगते हैं जैसे जबलपुर बरमान आदि। इन नदियों में स्नान के उपरांत लोग तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं राशि अपनी शक्ति के अनुसार दान करते हैं।

पं अनिल कुमार पाण्डेय
सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता
एस्ट्रो साइंटिस्ट और वास्तु शास्त्री
स्टेट बैंक कॉलोनी, मकरोनिया,
सागर, मध्य प्रदेश- 470004
संपर्क- 7566503333