मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ शिक्षक अध्यापक प्रकोष्ठ के प्रांताध्यक्ष मुकेश सिंह ने द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया कि प्रदेश के लगभग ढाई लाख अध्यापकों को राज्य शिक्षा सेवा कैडर की विसंगतिपूर्ण सेवा शर्तों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जुलाई 2018 से अध्यापक संवर्ग के लोक सेवकों को स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन किये जाने की घोषणा की गई थी। जिसके तहत अध्यापक संवर्ग का संविलियन कर समान पदनाम व वेतन दिया जाना था, परन्तु शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारियों द्वारा सरकार को गुमराह कर अध्यापक संवर्ग के संविलियन को जुलाई 2018 से शिक्षा विभाग के स्थान पर एक नया कैडर ‘राज्य शिक्षा सेवा’ में नवीन नियुक्ति प्रदान कर दी गई, जिससे प्रदेश के लगभग ढाई लाख अध्यापकों को करीब 22 वर्षो की सेवा शून्य हो गई है।
साथ ही इन्हें उनकी पुरानी वरिष्ठता, पदोन्नति, कमोन्नति, ग्रेच्युटी परिवार पेंशन इत्यादि लाभों से भी वंचित कर दिया गया है, जबकि मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार नियमित शिक्षकों के समान सभी शासकीय सेवा शर्तों के लाभ प्रदान किये जाने थे। राज्य शिक्षा सेवा की विसंगतिपूर्ण सेवा शर्तों के कारण अध्यापक संवर्ग को शिक्षा विभाग में नियुक्ति के नाम पर प्रथम नियुक्ति तिथि से संविलियन करते हुए वरिष्ठता एवं अन्य लाभ से वंचित रखा गया है आईएफएमआईएस पोर्टल पर भी प्रथम नियुक्ति की तिथि 1 जुलाई 2018 बताई जा रही है ।
संघ के मुकेश सिंह, योगेन्द्र मिश्रा, अजय सिंह ठाकुर, मनीष चौबे, श्यामनारायण तिवारी, प्रणव साहू, राकेश दुबे, मो. तारिक, धीरेन्द्र सोनी, मनीष लोहिया, गणेश उपाध्याय, राकेश पाण्डेय, मनीष शुक्ला, शुभ संदेश सिंगौर, महेश कोरी, सुदेश पाण्डेय, विनय नामदेव, देवदत्त शुक्ला, सोनल दुबे, विजय कोष्टी, अब्दुल्ला चिस्ती, पवन ताम्रकार, संजय श्रीवास्तव, आदित्य दीक्षित, संतोष कावेरिया, जय प्रकाश गुप्ता, आनंद रैकवार, अभिषेक मिश्रा, संतोष तिवारी, प्रियांशु शुक्ला, केके प्रजापति आदि ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग की है कि उनकी मंशानुसार अध्यापक संवर्ग के लोक सेवकों को शिक्षा विभाग में उनकी प्रथम नियुक्ति तिथि 1998 से राज्य शिक्षा सेवा में नियुक्ति मान्य की जाकर अन्य सभी लाभ नियमित शिक्षकों के समान प्रदान किये जाये।