एमपी में सेवानिवृत्त होने लगे लोकसेवक लेकिन चार वर्षो में भी नहीं हो पाया वरिष्ठता का निर्धारण

मध्य प्रदेश में सरकारी विभागों में उच्च अधिकारियों की तानाशाही और महत्वपूर्ण कार्यों को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति के चलते लोकसेवकों को सरकार के निर्णयों का लाभ समय पर नहीं मिल पाता है और अक्सर इस कारण लोकसेवकों को आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है।

मप्र तीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के शिक्षक-अध्यापक प्रकोष्ठ ने के प्रांताध्यक्ष मुकेश सिंह ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि 1 जुलाई 2018 के पश्चात अध्यापक संवर्ग को नवीन संवर्ग में उच्च माध्यमिक शिक्षक, माध्यमिक शिक्षक एवं प्राथमिक शिक्षक के पद पर राज्य सेवा में शामिल किया गया है। किन्तु वर्ष 1998 से नियुक्त अध्यापक संवर्ग के लोक सेवकों की लगभग 21 वर्षो की वरिष्ठता के संबंध में कोई निर्णय नहीं किया गया है।

वरिष्ठता का नियुक्ति दिनांक से निर्धारण न होने से अध्यापकों को क्रमोन्नति, वरिष्ठ वेतनमान, समयमान वेतनमान एवं सेवानिवृत्त हो रहे अध्यापक संवर्ग के लोक सेवकों को अहर्तादायी सेवायें न होने के कारण उपादान में भी भारी नुकसान उठाना पड रहा है। शासन द्वारा अध्यापक संवर्ग के 21 वर्षो की सेवाओं को दरकिनार करते हुए 1 जुलाई 2018 से राज्य सेवा में माना जा रहा है। जहां पूर्व में शासन द्वारा स्पष्ट कहा गया था, कि नियुक्ति दिनांक की वरिष्ठता दिनांक होगी, इसके बावजूद अध्यापकों की वरिष्ठता नजरअंदाज की जा रही है।

संघ के मुकेश सिंह, योगेन्द्र मिश्रा, सुनील राय, मनीष चौबे, मनोज सेन, श्याम नारायण तिवारी, राकेश दुबे, मनीष लोहिया, महेश कोरी, प्रणव साहू, विष्णु पाण्डे, आन्नद रैकवार, मो. तारिक, धीरेन्द्र सोनी, गणेश उपाध्याय, विनय नामदेव, प्रियांशु शुक्ला, राकेश पाण्डे, विजय कोष्टी मनीष शुक्ला, सुदेश पाण्डे, संतोष तिवारी, सतीश पटैल, विजय कोष्टी, सोनल दुबे, देवदत्त शुक्ला, ब्रजेश गोस्वामी, नितिन शर्मा, संजय श्रीवास्तव, आदित्य दीक्षित आदि ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग की है कि अध्यापकों को नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता का लाभ दिया जाये।