बिजली कंपनियों के निजीकरण के विरोध 3 फरवरी को देश भर में कार्य का बहिष्कार करेंगे विद्युत कर्मी

Energy department mp

केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए ड्राफ्ट, इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 एवं विद्युत वितरण का शत-प्रतिशत निजीकरण करने हेतु जारी किए गये ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट के विरोध में नेशनल कोडिनेशन कमेटी आफ इलेक्ट्रीसीटी एम्पलाइज एवं इंजीनियर्स के आव्हान पर देश भर के सभी राज्यों में विद्युत कर्मी 3 फरवरी को कार्य का बहिष्कार करेंगे।

मध्य प्रदेश यूनाइटेड फोरम फॉर पावर एम्पलाइज एवं इंजीनियर के संयोजक इंजीनियर व्हीकेएस परिहार का कहना है कि यूनाइटेड फोरम प्रारंभ से ही ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण का विरोध करता रहा है. इसी क्रम में मध्य प्रदेश में यूनाइटेड फोरम फॉर पावर एम्पलाइज एवं इंजीनियर के बैनर तले किसान आंदोलन, जिसमें इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 की वापसी एक प्रमुख मांग है, के प्रति नैतिक समर्थन एवं एकजुटता प्रदर्शित करने हेतु मध्य प्रदेश की विद्युत कंपनियों के तमाम कर्मचारी एवं अभियंता आगामी 3 फरवरी को सांकेतिक तौर पर कार्य बहिष्कार करेंगे।

हालांकि कार्य बहिष्कार से पारेषण प्रणाली एवं उत्पादन में पाली में कार्यरत कर्मी अलग रखे जाएंगे. केंद्र एवं प्रदेश सरकार से यह मांग है कि प्रस्तावित विद्युत सुधार बिल 2020 एवं एसबीडी को तुरन्त वापस लिया जाये। प्रदेश एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में वितरण कंपनियों के निजीकरण को वापस लिया जाकर देश में प्राइवेट लाइसेंसी एवं फ्रेंचाइजी समाप्त की जाये।

वहीं पूरे देश में उत्पादन, पारेषण एवं वितरण कंपनियों का केरल एवं हिमाचल राज्य विद्युत बोर्ड की तरह एकीकरण किया जाये। नई पेंशन योजना को समाप्त कर पुरानी पेंशन योजना लागू की जाये एवं अनिवार्य सेवानिवृत को विद्युत क्षेत्र में समाप्त किया जाये।

इसके अलावा संविदा कर्मियों के नियमितीकरण के साथ-साथ आउटसोर्स कर्मियों का तेलगांना शासन की तर्ज पर संविलियन किया जाये। अधोसंरचना अनुसार नये पद सृजन कर उन्हें केवल नियमित कर्मचारियों से भरा जाये।

यूनाइटेड फोरम, मध्य प्रदेश विद्युत कंपनियों में कार्यरत सभी उत्पादन, ट्रांसमिशन एवं वितरण कंपनियों के सभी अधिकारी व कर्मचारी से अपील है कि 3 फरवरी को प्रस्तावित कार्य बहिष्कार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना सुनिश्चित करें, जिससे कि केंद्र एवं राज्य सरकारें निजीकरण बंद करते हुये सभी मांगों पर विचार कर उनका निराकरण करने हेतु बाध्य हो सकें।