मौद्रीकरण की आड़ मे निजीकरण के खिलाफ WCREU के नेतृत्व में रेल कर्मचारियों ने भरी हुंकार

केन्द्र सरकार द्वारा 6 लाख करोड़ रुपये राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइप लाइन की घोषणा की गयी थी। जिसमें भारतीय रेलवे के 400 रेलवे स्टेशन, 90 पैसेंजर गाड़ियां, 1400 किमी रेलवे ट्रैक, 265 गुड्स शेड, 741 किमी कोंकण रेलवे, 4 हिल स्टेशन, 673 किमी DFCL, 15 रेलवे स्टेडियम एवं रेलवे कालोनियों को निजी कंपनियों को देने का प्रस्ताव है।

इस नीति व प्रस्ताव के खिलाफ वेस्ट सेन्ट्रल रेलवे एम्पलाईज यूनियन द्वारा गुरुवार 8 सितंबर को स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-6 के बाहर द्वारसभा कर विरोध प्रदर्शन किया गया। द्वारसभा में सहा. महामंत्री काम. मनीष यादव एवं रोमेश मिश्रा ने कहा कि ऑल इंडिया रेलवेमैस फेडरेशन एवं रेल कर्मचारी लम्बे समय से विभिन्न शान्तिपूर्ण एवं प्रजातांत्रिक तरीकों से सरकार के इस निर्णय का विरोध करते रहे है।

यूनियन के सदस्य धरने, जनसभाएं, सांकेतिक हड़ताल आदि के माध्यम से अपनी एकजुटता एवं आक्रोश प्रकट कर रहे है। लेकिन भारत सरकार के अरियल रूख के चलते किसी की नहीं सुन रही है। इस मौद्रीकरण का खामियाजा रेलवे कर्मचारियों व आम जनता को भुगतान पड़ेगा ।

यूनियन के मंडल अध्यक्ष काम. बीएन शुक्ला ने ललकारते हुये कहा कि मौढ़ीकरण के लिये जिन स्टेशनों, गाड़ियों, रेल लाइनों व अन्य परिसम्पत्तियों का चयन प्रस्तावित है। वे सब रेलवे को लाभ देने वाले संसाधन हैं। उन्होंने कहा कि मौद्रीकरण की योजना पिछले दरवाजे से निजीकरण व निगमीकरण की सजिश है।

उन्होंने कहा कि मुट्ठीभर लोगों को खुश करने के लिये लाभदायक व विकसित संसाधनों को पूँजीपतियों के हवाले करना सरासर गलत है। मौद्रीकरण, निजीकरण, निगमीकरण भारत सरकार की नाकामी है । काम. बीएन शुक्ला ने कहा कि यदि सरकार इस तुगलकी फैसले को वापस नहीं लेती है तो रेल कर्मचारी आर-पार का संघर्ष करने को मजबूर होगा।

कामरेड सुशान्तनील ने संचालन करते हुये कहा कि भारत सरकार से आग्रह है कि इस प्रस्ताव को वापस लिया जाये। सरकार की तानाशाही के विरोध में सभी मजदूरों को भविष्य की लम्बी लडाई के लिये तैयार रहना चाहिये। द्वारसभा मे 300 से भी अधिक रेल कर्मचारी उपस्थित रहे।