Wednesday, January 22, 2025
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पीएम-एसटीआईएसी की बैठक में हुई भारत में सेल एवं जीन थेरेपी पर चर्चा

प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार परिषद (पीएम-एसटीआईएसी) की 27वीं बैठक आज, 21 जनवरी 2025 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो अजय कुमार सूद की अध्यक्षता में हुई। इस बैठक में पीएम-एसटीआईएसी सदस्यों के साथ, प्रमुख सरकारी अधिकारी, उद्योग जगत के दिग्गज, स्वास्थ्य पेशेवर और शिक्षाविद भारत में सेल एवं जीन थेरेपी पर चर्चा करने के लिए एक मंच पर आए।

बैठक में डॉ. वीके पॉल, सदस्य (स्वास्थ्य) नीति आयोग; डॉ. परविंदर मैनी, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय में वैज्ञानिक सचिव; डॉ. राजेश एस. गोखले, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव; डॉ. राजीव बहल, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव;  डॉ. समीर वी. कामत, सचिव, रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग और अध्यक्ष, डीआरडीओ; डॉ. वी. नारायणन, अंतरिक्ष विभाग के सचिव; डॉ. अजीत कुमार मोहंती, परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव, और प्रो अभय करंदीकर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव भी उपस्थित हुए।

अपने उद्घाटन भाषण में, प्रो अजय कुमार सूद ने बल देकर कहा कि भारत में लगभग सात करोड़ लोग दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत बीमारियों की प्रकृति आनुवंशिक है। उन्होंने देश में महत्वपूर्ण बीमारी के बोझ की बात की, जिसमें कैंसर मामलों में वृद्धि शामिल है। अजय कुमार सूद ने इन महत्वपूर्ण चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सेल एवं जीन थेरेपी (सीजीटी) की अपार संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जीनोम इंडिया परियोजना जैसी प्रगति भारत को व्यक्तिगत जीन उपचारों में नेतृत्व प्रदान करने में विशिष्ट बनाती है। प्रो सूद ने उल्लेख किया हीमोफिलिया के लिए सीएआर-टी सेल थेरेपी एवं जीन थेरेपी की सफलताओं पर निर्माण प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती एवं सुलभ हो सकती है। उन्होंने कहा कि प्रभावी कार्यान्वयन के लिए लागत, विनियम, अवसंरचना और सार्वजनिक धारणा को संबोधित करने के लिए एक समग्र कार्यक्रम के साथ-साथ सरकार, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, शोधकर्ताओं और उद्योग जगत के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है।

डॉ. वीके पॉल, नीति आयोग के सदस्य ने भारत में सीजीटी में प्रगति में तेजी लाने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सरकार की ओर से मजबूत समर्थन के साथ-साथ शिक्षा और उद्योग के बीच तालमेल के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ. पॉल ने पारंपरिक उपचार विधियों की तुलना में सीजीटी की उत्साहजनक सफलता दर पर चर्चा की। उन्होंने बल देकर कहा कि सरकार, उद्योग, स्टार्ट-अप, नियामकों और शिक्षाविदों के बीच सहयोग के माध्यम से, सीजीटी उपचार को ज्यादा सस्ता एवं सुलभ बनाया जा सकता है।

प्रस्तुतियों के पहले सत्र में सेल एवं जीन थेरेपी के विकास में जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और फार्मास्यूटिकल्स विभाग की पहल, प्रगति और कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया गया।

आईआईटी मुंबी के डॉ. राहुल पुरवार और सेंट जॉन्स अस्पताल, बेंगलुरु के डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने हीमोफिलिया के लिए क्रमशः भारत की पहली स्वदेशी सीएआर-टी थेरेपी और जीन थेरेपी के विकास पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की।

इम्यूनल थेरेप्यूटिक्स, माइक्रो सीआरआईएसपीआर, लॉरस लैब्स लिमिटेड और इंटास फार्मा की उद्योग प्रस्तुतियों ने सीजीटी में अपने कार्यों का प्रदर्शन किया। इसके अतिरिक्त, प्रस्तुतियों में नियामक सुधारों, कच्चे माल का स्वदेशीकरण, नैदानिक परीक्षणों एवं अनुसंधान के लिए उन्नत अवसंरचना और उद्योग जगत की मांगों को पूरा करने के लिए कुशल मानव संसाधन विकसित करने के लिए क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया गया।

भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) डॉ. राजीव रघुवंशी ने सीजीटी दवा विकास और वर्तमान नियामक ढांचे के लिए मौजूदा मार्गदर्शन प्रस्तुत किया। उन्होंने अनुमोदन प्रक्रिया को बढ़ाने के उद्देश्य से चल रहे सुधारों पर जोर दिया, जिसमें प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजिटलीकरण, वैज्ञानिक विशेषज्ञ समितियों (एसईसी) को मजबूत करना और कड़े सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए सीजीटी को आगे बढ़ाने की क्षमता का निर्माण करना शामिल है।

डॉ. राजीव रघुवंशी, भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने सीजीटी दवा विकास एवं वर्तमान नियामक संरचना के लिए मौजूदा मार्गदर्शन प्रस्तुत किया। उन्होंने अनुमोदन प्रक्रिया को बढ़ाने के उद्देश्य से वर्तमान में हो रहे सुधारों पर बल दिया, जिसमें प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजिटलीकरण, वैज्ञानिक विशेषज्ञ समितियों (एसईसी) को मजबूत करना एवं कड़े सुरक्षा मानकों को कायम रखते हुए सीजीटी को आगे बढ़ाने की क्षमता निर्माण करना शामिल है।

प्रस्तुतियों के बाद, अध्यक्ष ने विशेष आमंत्रित अतिथियों से मध्यवर्तन आमंत्रित किया, जिन्होंने वक्ताओं के सुझावों एवं निष्कर्षों को प्रतिध्वनित किया।

पीएम-एसटीआईएसी के सदस्यों ने कैंसर सहित विभिन्न बीमारियों के उपचार में सेल एवं जीन थेरेपी (सीजीटी) की व्यापक क्षमता पर बल दिया। उन्होंने इस क्षेत्र में प्रगति के लिए सीजीटी पर एक राष्ट्रीय मिशन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। चर्चाओं में एक केंद्रीकृत डेटाबेस का निर्माण शामिल था, जिससे प्रयासों, संसाधनों और रोग डेटा पर जानकारी संकलित किया जा सके, जो भारत में प्रासंगिक बीमारियों को प्राथमिकता देने में मदद करता है। बैठक में परीक्षण पहुंच में सुधार लाने के लिए सरकारी अस्पतालों के साथ सह-स्थानीयकृत सीजीटी क्लीनिक स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया। उद्योग जगत की भागीदारी एवं व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए, उद्योग प्रोत्साहन के उपाय प्रस्तावित किए गए। देश की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के लिए सामर्थ्य और पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ नवाचार को बढ़ावा देने एवं क्षमता निर्माण के लिए उत्कृष्टता केंद्रों के महत्व पर बल दिया गया।

डॉ. पॉल ने सीजीटी उत्पादों में देश की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक प्रमुख कार्यों की पहचान करके चर्चा को संक्षेप में प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रौद्योगिकी साझा करने और शिक्षा से उद्योग तक हस्तांतरण एवं उत्पाद विकास में हितधारकों की क्षमताओं के पूरक होने की आवश्यकता पर बल दिया। इसके अलावा, उन्होंने लागत प्रभावी विश्लेषण के माध्यम से पहुंच एवं सामर्थ्य सुनिश्चित करने के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ. पॉल ने इन प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए धन सुरक्षित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

अपने समापन भाषण में, प्रोफेसर सूद ने भारत में सीजीटी को आगे बढ़ाने के लिए मिशन-मोड दृष्टिकोण अपनाने के महत्व पर बल दिया और प्रतिभागियों के सुझावों को दोहराया। उन्होंने बल देकर कहा कि सीजीटी आपूर्ति श्रृंखला के सभी पहलुओं को स्वदेशी बनाने एवं नई प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए यह दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सीडीएससीओ की महत्वपूर्ण भूमिका और सीजीटी के लिए नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने में चल रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला। इसके अलावा, प्रो सूद ने सभी प्रासंगिक हितधारकों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने के लिए एक केंद्रीकृत डैशबोर्ड की आवश्यकता पर बल दिया। प्रोफेसर सूद ने आगे बढ़ने के लिए, सेल एवं जीन थेरेपी के लिए रोडमैप तैयार करने के लिए डीबीटी एवं अन्य एजेंसियों के परामर्श से आईसीएमआर द्वारा एक व्यापक मिशन दस्तावेज का निर्माण करने की सिफारिश की।

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