Thursday, December 26, 2024
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हाई कोर्ट का निर्णय- किसी भी शासकीय सेवक का इस्तीफा निर्धारित प्रक्रियाओं को पूरा किए बिना नहीं हो सकता प्रभावी

बिलासपुर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि निर्धारित प्रक्रियाओं को पूरा किए बिना किसी भी शासकीय सेवक का इस्तीफा प्रभावी नहीं हो सकता। बीती देर शाम अपने फैसले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि एक बार जब इस्तीफा गैर-अनुपालन के कारण अस्वीकार कर दिया जाता है, तो संबंधित विभाग के आला अफसर पर इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी बनती है कि त्यागपत्र की स्वीकृति के साथ पत्र को आगे बढ़ाने से पहले सभी शर्तें पूरी कर ली गई है या नहीं।सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों के लिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन सकता है।

न्यायालयीन सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के उप प्रबंधक शैलेंद्र कुमार खम्परिया ने 26 मार्च, 2016 को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए ई-मेल के जरिए इस्तीफा दे दिया था। विभाग ने ई-मेल के जरिए भेजे गए त्यागपत्र में निर्दिष्ट तिथि का अभाव और तीन महीने का वेतन जमा करने की शर्त को पूरा नहीं करने का हवाला देकर इसे अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद सितंबर 2016 में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।

इसके बाद उप महाप्रबंधक खम्परिया ने अक्टूबर 2016 में अपना इस्तीफा वापस लेने की मांग की, जिस पर निगम ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, और इस्तीफा स्वीकार कर लिए जाने की जानकारी दी।उन्होंने निगम अफसरों के इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए निगम द्वारा स्वीकार किए गए त्यागपत्र को गैर कानूनी ठहराया।

सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए नागरिक आपूर्ति निगम ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी। निगम की ओर से अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के सामने तर्क पेश करते हुए कहा कि एक बार इस्तीफा स्वीकार कर लेने के बाद, कर्मचारी को इसे वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही स्वीकृति की सूचना ना दी गई हो।उन्होंने आगे दावा किया कि अधूरी औपचारिकताओं के बावजूद खम्परिया का इस्तीफा प्रभावी हो गया और निगम तीन महीने का वेतन जमा न करने के लिए जिम्मेदार नहीं है। उप महाप्रबंधक खम्परिया के वकील ने तर्क दिया कि निगम ने शुरू में गैर-अनुपालन के कारण उनके इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया था।बाद में की गई इस्तीफे की स्वीकृति अमान्य थी, क्योंकि उन्होंने अपेक्षित शर्तें पूरी नहीं की थी। तीन महीने का वेतन भी जमा नहीं किया था। लिहाजा उन्हें अपना इस्तीफा वापस लेने की अनुमति देने से इनकार करना विभाग का अन्यायपूर्ण कार्रवाई है।

मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि एक बार जब इस्तीफा गैर-अनुपालन के कारण अस्वीकार कर दिया जाता है, तो संबंधित विभाग के आला अफसर पर इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी बनती है कि त्यागपत्र की स्वीकृति के साथ पत्र को आगे बढ़ाने से पहले सभी शर्तें पूरी कर ली गई है या नहीं।हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि एक बार जब इस्तीफ़ा गैर अनुपालन के कारण खारिज कर दिया गया तो स्वीकृति के साथ आगे बढ़ने से पहले यह सुनिश्चित करने का भार निगम पर आ गया की सभी शर्ते पूरी हो। क्योंकि खम्परिया ने इन शर्तो को पूरा किया हुए बिना संशोधित इस्तीफ़ा प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए इस्तीफ़ा बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए था।

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