मन की बात की 114वीं कड़ी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा- मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। ‘मन की बात’ में एक बार फिर हमें जुड़ने का अवसर मिला है। आज का ये Episode मुझे भावुक करने वाला है, मुझे बहुत सी पुरानी यादों से घेर रहा है – कारण ये है कि ‘मन की बात’ की हमारी इस यात्रा को 10 साल पूरे हो रहे हैं। 10 साल पहले ‘मन की बात’ का प्रारंभ 3 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन हुआ था और ये कितना पवित्र संयोग है, कि, इस साल 3 अक्टूबर को जब ‘मन की बात’ के 10 वर्ष पूरे होंगे, तब, नवरात्रि का पहला दिन होगा। ‘मन की बात’ की इस लंबी यात्रा के कई ऐसे पड़ाव हैं, जिन्हें मैं कभी भूल नहीं सकता। ‘मन की बात’ के करोड़ों श्रोता हमारी इस यात्रा के ऐसे साथी हैं, जिनका मुझे निरंतर सहयोग मिलता रहा। देश के कोने- कोने से उन्होनें जानकारियां उपलब्ध कराई। ‘मन की बात’ के श्रोता ही इस कार्यक्रम के असली सूत्रधार हैं। आमतौर पर एक धारणा ऐसी घर कर गई है, कि जब तक चटपटी बातें न हो, नकारात्मक बातें न हो तब तक उसको ज्यादा तवज्जोह नहीं मिलती है। लेकिन ‘मन की बात’ ने साबित किया है कि देश के लोगों में positive जानकारी की कितनी भूख है। Positive बातें, प्रेरणा से भर देने वाले उदाहरण, हौसला देने वाली गाथाएँ, लोगों को, बहुत पसंद आती हैं। जैसे एक पक्षी होता है ‘चकोर’ जिसके बारे में कहा जाता है कि वो सिर्फ वर्षा की बूंद ही पीता है। ‘मन की बात’ में हमने देखा कि लोग भी चकोर पक्षी की तरह, देश की उपलब्धियों को, लोगों की सामूहिक उपलब्धियों को, कितने गर्व से सुनते हैं। ‘मन की बात’ की 10 वर्ष की यात्रा ने एक ऐसी माला तैयार की है, जिसमें, हर episode के साथ नई गाथाएँ, नए कीर्तिमान, नए व्यक्तित्व जुड़ जाते हैं। हमारे समाज में सामूहिकता की भावना के साथ जो भी काम हो रहा हो, उन्हें ‘मन की बात’ के द्वारा सम्मान मिलता है। मेरा मन भी तभी गर्व से भर जाता है, जब मैं ‘मन की बात’ के लिए आयी चिट्ठियों को पढ़ता हूँ। हमारे देश में कितने प्रतिभावान लोग हैं, उनमें देश और समाज की सेवा करने का कितना जज्बा है। वो लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं। उनके बारे में जानकर मैं ऊर्जा से भर जाता हूँ। ‘मन की बात’ की ये पूरी प्रक्रिया मेरे लिए ऐसी है, जैसे मंदिर जा करके ईश्वर के दर्शन करना। ‘मन की बात’ के हर बात को, हर घटना को, हर चिट्ठी को मैं याद करता हूँ तो ऐसे लगता है मैं जनता जनार्दन जो मेरे लिए ईश्वर का रूप है मैं उनका दर्शन कर रहा हूँ।
साथियो, मैं आज दूरदर्शन, प्रसार भारती और All India Radio से जुड़े सभी लोगों की भी सराहना करूंगा। उनके अथक प्रयासों से ‘मन की बात’ इस महत्वपूर्ण पड़ाव तक पहुंचा है। मैं विभिन्न TV channels को, Regional TV channels का भी आभारी हूँ जिन्होनें लगातार इसे दिखाया है। ‘मन की बात’ के द्वारा हमने जिन मुद्दों को उठाया, उन्हें लेकर कई Media Houses ने मुहिम भी चलाई। मैं Print media को भी धन्यवाद देता हूँ कि उन्होनें इसे घर-घर तक पहुंचाया। मैं उन YouTubers को भी धन्यवाद दूंगा जिन्होनें ‘मन की बात’ पर अनेक कार्यक्रम किए। इस कार्यक्रम को देश की 22 भाषाओं के साथ 12 विदेशी भाषाओं में भी सुना जा सकता है। मुझे अच्छा लगता है जब लोग ये कहते हैं कि उन्होनें ‘मन की बात’ कार्यक्रम को अपनी स्थानीय भाषा में सुना। आप में से बहुत से लोगों को ये पता होगा कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम पर आधारित एक Quiz Competition भी चल रहा है, जिसमें, कोई भी व्यक्ति हिस्सा ले सकता है। MyGov.in पर जाकर आप इस competition में हिस्सा ले सकते हैं और ईनाम भी जीत सकते हैं। आज इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर, मैं एक बार फिर आप सबसे आशीर्वाद माँगता हूँ। पवित्र मन और पूर्ण समर्पण भाव से, मैं इसी तरह, भारत के लोगों की महानता के गीत गाता रहूँ। देश की सामूहिक शक्ति को, हम सब, इसी तरह celebrate करते रहें – यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है, जनता-जनार्दन से प्रार्थना है।
मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले कुछ सप्ताह से देश के अलग-अलग हिस्सों में जबरदस्त बारिश हो रही है। बारिश का ये मौसम, हमें याद दिलाता है कि ‘जल-संरक्षण’ कितना जरूरी है, पानी बचाना कितना जरूरी है। बारिश के दिनों में बचाया गया पानी, जल संकट के महीनों में बहुत मदद करता है, और यही ‘Catch the Rain‘ जैसे अभियानों की भावना है। मुझे खुशी है कि पानी के संरक्षण को लेकर कई लोग नई पहल कर रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयास उत्तर प्रदेश के झांसी में देखने को मिला है। आप जानते ही हैं कि ‘झांसी’ बुंदेलखंड में है, जिसकी पहचान, पानी की किल्लत से जुड़ी हुई है। यहाँ, झांसी में कुछ महिलाओं ने घुरारी नदी को नया जीवन दिया है। ये महिलाएं Self help group से जुड़ी हैं और उन्होनें ‘जल सहेली’ बनकर इस अभियान का नेतृत्व किया है। इन महिलाओं ने मृतप्राय हो चुकी घुरारी नदी को जिस तरह से बचाया है, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। इन जल सहेलियों ने बोरियों में बालू भरकर चेकडैम (Check Dam) तैयार किया, बारिश का पानी बर्बाद होने से रोका और नदी को पानी से लबालब कर दिया। इन महिलाओं ने सैकड़ों जलाशयों के निर्माण और उनके Revival में भी बढ़-चढ़कर हाथ बटाया है। इससे इस क्षेत्र के लोगों की पानी की समस्या तो दूर हुई ही है, उनके चेहरों पर, खुशियां भी लौट आई हैं।
साथियो, कहीं नारी-शक्ति, जल-शक्ति को बढ़ाती है तो कहीं जल-शक्ति भी नारी-शक्ति को मजबूत करती है। मुझे मध्य प्रदेश के दो बड़े ही प्रेरणादायी प्रयासों की जानकारी मिली है। यहाँ डिंण्डौरी के रयपुरा गाँव में एक बड़े तालाब के निर्माण से भू-जल स्तर काफी बढ़ गया है। इसका फायदा इस गाँव की महिलाओं को मिला। यहाँ ‘शारदा आजीविका स्वयं सहायता समूह’ इससे जुड़ी महिलाओं को मछली पालन का नया व्यवसाय भी मिल गया। इन महिलाओं ने Fish-Parlour भी शुरू किया है, जहाँ होने वाली मछलियों की बिक्री से उनकी आय भी बढ़ रही है। मध्य प्रदेश के छतरपुर में भी महिलाओं का प्रयास बहुत सराहनीय है। यहाँ के खोंप गाँव का बड़ा तालाब जब सूखने लगा तो महिलाओं ने इसे पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। ‘हरी बगिया स्वयं सहायता समूह’ की इन महिलाओं ने तालाब से बड़ी मात्रा में गाद निकाली, तालाब से जो गाद निकली उसका उपयोग उन्होंने बंजर जमीन पर fruit forest तैयार करने के लिए किया। इन महिलाओं की मेहनत से ना सिर्फ तालाब में खूब पानी भर गया, बल्कि, फसलों की उपज भी काफी बढ़ी है। देश के कोने-कोने में हो रहे ‘जल संरक्षण’ के ऐसे प्रयास पानी के संकट से निपटने में बहुत मददगार साबित होने वाले हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि आप भी अपने आसपास हो रहे ऐसे प्रयासों से जरूर जुड़ेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो, उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक सीमावर्ती गाँव है ‘झाला’। यहां के युवाओं ने अपने गाँव को स्वच्छ रखने के लिए एक खास पहल शुरू की है। वे अपने गाँव में ‘धन्यवाद प्रकृति’ या कहें ‘Thank you Nature’ अभियान चला रहे हैं। इसके तहत गाँव में रोजाना दो घंटे सफाई की जाती है। गाँव की गलियों में बिखरे हुए कूड़े को समेटकर, उसे, गाँव के बाहर, तय जगह पर, डाला जाता है। इससे झाला गाँव भी स्वच्छ हो रहा है और लोग जागरूक भी हो रहे हैं। आप सोचिए, अगर ऐसे ही हर गाँव, हर गली-हर मोहल्ला, अपने यहां ऐसा ही Thank You अभियान शुरू कर दे, तो कितना बड़ा परिवर्तन आ सकता है।
साथियो, स्वच्छता को लेकर पुडुचेरी के समुद्र तट पर भी जबरदस्त मुहिम चलाई जा रही है। यहां रम्या जी नाम की महिला, माहे municipality और इसके आसपास के क्षेत्र के युवाओं की एक टीम का नेतृत्व कर रही है। इस टीम के लोग अपने प्रयासों से माहे Area और खासकर वहाँ के Beaches को पूरी तरह साफ-सुथरा बना रहे हैं।
साथियो, मैंने यहां सिर्फ दो प्रयासों की चर्चा की है, लेकिन, हम आसपास देखें, तो पाएंगे कि देश के हर किसी हिस्से में, ‘स्वच्छता’ को लेकर कोई-ना-कोई अनोखा प्रयास जरूर चल रहा है। कुछ ही दिन बाद आने वाले 2 अक्टूबर को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के 10 साल पूरे हो रहे हैं। यह अवसर उन लोगों के अभिनंदन का है जिन्होंने इसे भारतीय इतिहास का इतना बड़ा जन-आंदोलन बना दिया। ये महात्मा गांधी जी को भी सच्ची श्रद्धांजलि है, जो जीवनपर्यंत, इस उद्देश्य के लिए समर्पित रहे।
साथियो, आज ये ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की ही सफलता है कि ‘Waste to Wealth’ का मंत्र लोगों में लोकप्रिय हो रहा है। लोग ‘Reduce, Reuse और Recycle’ पर बात करने लगे हैं, उसके उदाहरण देने लगे हैं। अब जैसे मुझे केरला में कोझिकोड में एक शानदार प्रयास के बारे में पता चला। यहां Seventy four (74) year के सुब्रह्मण्यम जी 23 हजार से अधिक कुर्सियों की मरम्मत करके उन्हें दोबारा काम लायक बना चुके हैं। लोग तो उन्हें ‘Reduce, Reuse, और Recycle, यानि, RRR (Triple R) Champion भी कहते हैं। उनके इन अनूठे प्रयासों को कोझिकोड सिविल स्टेशन, PWD और L।C के दफ्तरों में देखा जा सकता है।
साथियो, स्वच्छता को लेकर जारी अभियान से हमें ज्यादा-से- ज्यादा लोगों को जोड़ना है, और यह एक अभियान, किसी एक दिन का, एक साल का, नहीं होता है, यह युगों-युगों तक निरंतर करने वाला काम है। यह जब तक हमारा स्वभाव बन जाए ‘स्वच्छता’, तब तक करने का काम है। मेरा आप सबसे आग्रह है कि आप भी अपने परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों या सहकर्मियों के साथ मिलकर स्वच्छता अभियान में हिस्सा जरूर लें। मैं एक बार फिर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की सफलता पर आप सभी को बधाई देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, हम सभी को अपनी विरासत पर बहुत गर्व है। और मैं तो हमेशा कहता हूँ ‘विकास भी-विरासत भी’। यही वजह है कि मुझे हाल की अपनी अमेरिका यात्रा के एक खास पहलू को लेकर बहुत सारे संदेश मिल रहे हैं। एक बार फिर हमारी प्राचीन कलाकृतियों की वापसी को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। मैं इसे लेकर आप सबकी भावनाओं को समझ सकता हूँ और ‘मन की बात’ के श्रोताओं को भी इस बारे में बताना चाहता हूँ।
साथियो, अमेरिका की मेरी यात्रा के दौरान अमेरिकी सरकार ने भारत को करीब 300 प्राचीन कलाकृतियों को वापस लौटाया है। अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने पूरा अपनापन दिखाते हुए डेलावेयर (Delaware) के अपने निजी आवास में इनमें से कुछ कलाकृतियों को मुझे दिखाया। लौटाई गईं कलाकृतियाँ Terracotta, Stone, हाथी के दांत, लकड़ी, तांबा और कांसे जैसी चीजों से बनी हुई हैं। इनमें से कई तो चार हजार साल पुरानी हैं। चार हजार साल पुरानी कलाकृतियों से लेकर 19वीं सदी तक की कलाकृतियों को अमेरिका ने वापस किया है – इनमें फूलदान, देवी-देवताओं की टेराकोटा (Terracotta) पट्टिकाएं, जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के अलावा भगवान बुद्ध और भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियाँ भी शामिल हैं। लौटाई गईं चीजों में पशुओं की कई आकृतियाँ भी हैं। पुरुष और महिलाओं की आकृतियों वाली जम्मू-कश्मीर की Terracotta tiles तो बेहद ही दिलचस्प हैं। इनमें कांसे से बनी भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमाएं भी हैं, जो, दक्षिण भारत की हैं। वापस की गई चीजों में बड़ी संख्या में भगवान विष्णु की तस्वीरें भी हैं। ये मुख्य रूप से उत्तर और दक्षिण भारत से जुड़ी हैं। इन कलाकृतियों को देखकर पता चलता है कि हमारे पूर्वज बारीकियों का कितना ध्यान रखते थे। कला को लेकर उनमें गजब की सूझ-बूझ थी। इनमें से बहुत सी कलाकृतियों को तस्करी और दूसरे अवैध तरीकों से देश के बाहर ले जाया गया था – यह गंभीर अपराध है, एक तरह से यह अपनी विरासत को खत्म करने जैसा है, लेकिन मुझे इस बात की बहुत खुशी है, कि पिछले एक दशक में, ऐसी कई कलाकृतियां, और हमारी बहुत सारी प्राचीन धरोहरों की, घर वापसी हुई है। इस दिशा में, आज, भारत कई देशों के साथ मिलकर काम भी कर रहा है। मुझे विश्वास है जब हम अपनी विरासत पर गर्व करते हैं तो दुनिया भी उसका सम्मान करती है, और उसी का नतीजा है कि आज विश्व के कई देश हमारे यहाँ से गई हुई ऐसी कलाकृतियों को हमें वापस दे रहे हैं।
मेरे प्यारे साथियो, अगर मैं पूछूं कि कोई बच्चा कौन सी भाषा सबसे आसानी से और जल्दी सीखता है – तो आपका जवाब होगा ‘मातृ भाषा’। हमारे देश में लगभग बीस हजार भाषाएं और बोलियाँ हैं और ये सब की सब किसी-न-किसी की तो मातृ-भाषा है ही हैं। कुछ भाषाएं ऐसी हैं जिनका उपयोग करने वालों की संख्या बहुत कम है, लेकिन आपको यह जानकर खुशी होगी, कि उन भाषाओं को संरक्षित करने के लिए, आज, अनोखे प्रयास हो रहे हैं। ऐसी ही एक भाषा है हमारी ‘संथाली’ भाषा। ‘संथाली’ को digital Innovation की मदद से नई पहचान देने का अभियान शुरू किया गया है। ‘संथाली’, हमारे देश के कई राज्यों में रह रहे संथाल जनजातीय समुदाय के लोग बोलते हैं। भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में भी संथाली बोलने वाले आदिवासी समुदाय मौजूद हैं। संथाली भाषा की online पहचान तैयार करने के लिए ओडिशा के मयूरभंज में रहने वाले श्रीमान रामजीत टुडु एक अभियान चला रहे हैं। रामजीत जी ने एक ऐसा digital platform तैयार किया है, जहां संथाली भाषा से जुड़े साहित्य को पढ़ा जा सकता है और संथाली भाषा में लिखा जा सकता है। दरअसल कुछ साल पहले जब रामजीत जी ने मोबाईल फोन का इस्तेमाल शुरू किया तो वो इस बात से दुखी हुए कि वो अपनी मातृभाषा में संदेश नहीं दे सकते! इसके बाद वो ‘संथाली भाषा’ की लिपि ‘ओल चिकी’ को टाईप करने की संभावनाएं तलाश करने लगे। अपने कुछ साथियों की मदद से उन्होंने ‘ओल चिकी’ में टाईप करने की तकनीक विकसित कर ली। आज उनके प्रयासों से ‘संथाली’ भाषा में लिखे लेख लाखों लोगों तक पहुँच रहें हैं।
साथियो, जब हमारे दृढ़ संकल्प के साथ सामूहिक भागीदारी का संगम होता है तो पूरे समाज के लिए अदभुत नतीजे सामने आते हैं। इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है ‘एक पेड़ मां के नाम’ – ये अभियान अदभुत अभियान रहा, जन-भागीदारी का ऐसा उदाहरण वाकई बहुत प्रेरित करने वाला है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर शुरू किये गए इस अभियान में देश के कोने-कोने में लोगों ने कमाल कर दिखाया है। उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने लक्ष्य से अधिक संख्या में पौधारोपण कर नया रिकार्ड बनाया है। इस अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में 26 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए गए। गुजरात के लोगों ने 15 करोड़ से ज़्यादा पौधे रोपे। राजस्थान में केवल अगस्त महीने में ही 6 करोड़ से अधिक पौधे लगाए गए हैं। देश के हजारों स्कूल भी इस अभियान में जोर-शोर से हिस्सा ले रहें हैं।
साथियो, हमारे देश में पेड़ लगाने के अभियान से जुड़े कितने ही उदाहरण सामने आते रहते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है तेलंगाना के के.एन.राजशेखर जी का। पेड़ लगाने के लिए उनकी प्रतिबद्धता हम सब को हैरान कर देती है। करीब चार साल पहले उन्होंने पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की। उन्होंने तय किया कि हर रोज एक पेड़ जरूर लगाएगें। उन्होंने इस मुहिम का कठोर व्रत की तरह पालन किया। वो 1500 से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस साल एक हादसे का शिकार होने के बाद भी वे अपने संकल्प से डिगे नहीं। मैं ऐसे सभी प्रयासों की हृदय से सराहना करता हूँ। मेरा आपसे भी आग्रह है कि ‘एक पेड़ मां के नाम’ इस पवित्र अभियान से आप जरूर जुड़िए।
मेरे प्यारे साथियो, आपने देखा होगा, हमारे आस-पास कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपदा में धैर्य नहीं खोते, बल्कि उससे सीखते हैं। ऐसी ही एक महिला है सुबाश्री, जिन्होंने अपने प्रयास से, दुर्लभ और बहुत उपयोगी जड़ी-बूटियों का एक अद्भुत बगीचा तैयार किया है। वो तमिलनाडु के मदुरई की रहने वाली हैं। वैसे तो पेशे से वो एक टीचर हैं, लेकिन औषधीय वनस्पतियों, Medical Herbs के प्रति इन्हें गहरा लगाव है। उनका ये लगाव 80 के दशक में तब शुरू हुआ, जब एक बार, उनके पिता को जहरीले सांप ने काट लिया। तब पारंपरिक जड़ी-बूटियों ने उनके पिता की सेहत सुधारने में काफी मदद की थी। इस घटना के बाद उन्होंने पारंपरिक औषधियों और जड़ी-बूटियों की खोज शुरू की। आज, मदुरई के वेरिचियुर गाँव में उनका अनोखा Herbal Garden है, जिसमें, 500 से ज्यादा दुर्लभ औषधीय पौधे हैं। अपने इस बगीचे को तैयार करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है। एक-एक पौधे को खोजने के लिए उन्होंने दूर-दूर तक यात्राएं कीं, जानकारियाँ जुटाईं और कई बार दूसरे लोगों से मदद भी मांगी। कोविड के समय उन्होंने Immunity बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियाँ लोगों तक पहुँचाई। आज उनके Herbal Garden को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। वो सभी को Herbal पौधों की जानकारी और उनके उपयोग के बारे में बताती हैं। सुबाश्री हमारी उस पारंपरिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, जो सैकड़ों वर्षों से, हमारी संस्कृति का हिस्सा है। उनका Herbal Garden हमारे अतीत को भविष्य से जोड़ता है। उन्हें हमारी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
साथियो, बदलते हुए इस समय में Nature of Jobs बदल रही हैं और नए-नए sectors का उभार हो रहा है। जैसे Gaming, Animation, Reel Making, Film Making या Poster Making। अगर इनमें से किसी skill में आप अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं तो आपके Talent को बहुत बड़ा मंच मिल सकता है, अगर आप किसी Band से जुड़े हैं या फिर Community Radio के लिए काम करते हैं, तो भी आपके लिए बहुत बड़ा अवसर है। आपके Talent और Creativity को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ‘Create ।n India’ इस theme के तहत 25 Challenges शुरू किए हैं। ये Challenges आपको जरूर दिलचस्प लगेंगे। कुछ Challenges तो Music, Education और यहाँ तक कि Anti-Piracy पर भी Focused हैं। इस आयोजन में कई सारे Professional Organisation भी शामिल हैं, जो, इन Challenges को, अपना पूरा support दे रहे हैं। इनमें शामिल होने के लिए आप wavesindia.org पर login कर सकते हैं। देश-भर के creators से मेरा विशेष आग्रह है कि वे इसमें जरूर हिस्सा लें और अपनी creativity को सामने लाएं।
मेरे प्यारे देशवासियो, इस महीने एक और महत्वपूर्ण अभियान को 10 साल पूरे हुए हैं। इस अभियान की सफलता में, देश के बड़े उद्योगों से लेकर छोटे दुकानदारों तक का योगदान शामिल है। मैं बात कर रहा हूँ ‘Make ।n India’ की। आज, मुझे ये देखकर बहुत खुशी मिलती है, कि गरीब, मध्यम वर्ग और MSMEs को इस अभियान से बहुत फायदा मिल रहा है। इस अभियान ने हर वर्ग के लोगों को अपना Talent सामने लाने का अवसर दिया है। आज, भारत Manufacturing का Powerhouse बना है और देश की युवा-शक्ति की वजह से दुनिया-भर की नजरें हम पर हैं। Automobiles हो, Textiles हो, Aviation हो, Electronics हो, या फिर Defence, हर Sector में देश का export लगातार बढ़ रहा है। देश में FDI का लगातार बढ़ना भी हमारे ‘Make ।n India’ की सफलता की गाथा कह रहा है। अब हम मुख्य रूप से दो चीजों पर focus कर रहे हैं। पहली है ‘Quality’ यानि, हमारे देश में बनी चीजें global standard की हों। दूसरी है ‘Vocal for Local’ यानि, स्थानीय चीजों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिले। ‘मन की बात’ में हमने #MyProductMyPride की भी चर्चा की है। Local Product को बढ़ावा देने से देश के लोगों को किस तरह से फायदा होता है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है।
महाराष्ट्र के भंडारा जिले में Textile की एक पुरानी परंपरा है – ‘भंडारा टसर सिल्क हैंडलूम’ (‘Bhandara Tussar Silk Handloom’)। टसर सिल्क (Tussar Silk) अपने design, रंग और मजबूती के लिए जानी जाती है। भंडारा के कुछ हिस्सों में 50 से भी अधिक ‘Self Help Group’, इसे संरक्षित करने के काम में जुटे हैं। इनमें महिलाओं की बहुत बड़ी भागीदारी है। यह silk तेजी से लोकप्रिय हो रही है और स्थानीय समुदायों को सशक्त बना रही है, और यही तो ‘Make In India’ की spirit है।
साथियो, त्योहारों के इस मौसम में आप फिर से अपना पुराना संकल्प भी जरूर दोहराइए। कुछ भी खरीदेंगे, वो, ‘Made In India’, ही होना चाहिए, कुछ भी gift देंगे, वो भी, ‘Made In India’ ही होना चाहिए। सिर्फ मिट्टी के दीये खरीदना ही ‘Vocal for Local’ नहीं है। आपको, अपने क्षेत्र में बने स्थानीय उत्पादों को ज्यादा-से-ज्यादा promote करना चाहिये। ऐसा कोई भी product, जिसे बनाने में भारत के किसी कारीगर का पसीना लगा है, जो भारत की मिट्टी में बना है, वो हमारा गर्व है – हमें इसी गौरव पर हमेशा, चार चाँद लगाने हैं।
साथियो, ‘मन की बात’ के इस Episode में मुझे आपसे जुड़कर बहुत अच्छा लगा। इस कार्यक्रम से जुड़े अपने विचार और सुझाव हमें जरूर भेजियेगा। मुझे आपके पत्रों और संदेशों की प्रतीक्षा है। कुछ ही दिन बाद त्योहारों का season शुरू होने वाला है। नवरात्र से इसकी शुरुआत होगी और फिर अगले दो महीने तक पूजा-पाठ, व्रत-त्योहार, उमंग-उल्लास, चारों तरफ, यही वातावरण छाया रहेगा। मैं आने वाले त्योहारों की आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। आप सभी, अपने परिवार और अपने प्रियजनों के साथ त्योहार का खूब आनंद लें, और दूसरों को भी, अपने आनंद में शामिल करें। अगले महीने ‘मन की बात’ कुछ और नये विषयों के साथ आपसे जुड़ेंगे। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।