नई दिल्ली (हि.स.)। फार्मास्युटिकल कंपनी वॉकहार्ट ने ‘नैफिथ्रोमाइसिन’ नाम की एंटीबायोटिक नई दवा तैयार की है। इस दवा को एजिथ्रोमाइसिन जैसे मौजूदा एंटीबायोटिक के एक दमदार ऑप्शन के रूप में देखा जा रहा है। यह इंसानों में बढ़ रहे प्रतिरोध के स्तर से निपटने के लिए बनाया गया है। शुक्रवार को रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने यह जानकारी दी।
मंत्रालय ने बताया कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध लंबे समय से एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता का विषय रहा है। दवा कंपनियां दुनिया भर में इसका मुकाबला करने के लिए नई दवाएं विकसित करने का प्रयास कर रही हैं। तीन दशकों के शोध और कड़ी मेहनत के बाद भारत ने देश के पहले स्वदेशी मैक्रोलाइड एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है। यह उल्लेखनीय उपलब्धि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो फार्मास्युटिकल नवाचार में भारत की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित करता है।
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के खिलाफ भारत की लड़ाई
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी अब एंटीमाइक्रोबियल दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। दवा प्रतिरोध के परिणामस्वरूप एंटीबायोटिक्स और अन्य एंटीमाइक्रोबियल दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण का इलाज करना मुश्किल या असंभव हो जाता है, जिससे बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी, विकलांगता और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बन गई है, जिसमें भारत में हर साल लगभग 6 लाख लोगों की जान प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण चली जाती है। नई दवाओं के विकास के माध्यम से भारत एएमआर को संबोधित करने में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है।
मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद बायोटेक उद्योग कार्यक्रम के तहत 8 करोड़ रुपये के वित्तपोषण के साथ विकसित नैफिथ्रोमाइसिन इस प्रयास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। नैफिथ्रोमाइसिन को आधिकारिक तौर पर 20 नवंबर, 2024 को केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लॉन्च किया गया था।