भारतीय नौसेना का इस वर्ष का वार्षिक शीर्ष-स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद (IPRD) 3, 4 और 5 अक्टूबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा। यह सम्मेलन हाल ही में संपन्न गोवा समुद्री संगोष्ठी 2024 के बाद हो रहा है, जिसे भारतीय नौसेना ने 24 और 25 सितंबर 2024 को गोवा में नौसेना युद्ध कॉलेज में आयोजित किया था।
वैचारिक स्थिति के संदर्भ में जहां गोवा समुद्री संगोष्ठी भारतीय महासागर क्षेत्र में नौसेनाओं और समुद्री एजेंसियों के बीच चर्चा के लिए एक मंच प्रदान करके परिचालन स्तर पर भारतीय नौसेना की सहकारी भागीदारी को प्रदर्शित करना चाहती है, वहीं आईपीआरडी रणनीतिक स्तर पर भारतीय नौसेना की अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी की प्रमुख अभिव्यक्ति है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘समग्र’ समुद्री सुरक्षा मुद्दों को संभालती है। राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन भारतीय नौसेना का ज्ञान भागीदार और आईपीआरडी के प्रत्येक संस्करण का मुख्य आयोजक है।
आईपीआरडी के पहले दो संस्करण क्रमशः 2018 और 2019 में नई दिल्ली में आयोजित किए गए थे। कोविड-19 के चलते आईपीआरडी 2020 आयोजित नहीं किया गया था। इसका तीसरा संस्करण 2021 में वर्चुअल मोड में आयोजित किया गया था। वर्ष 2022 से आईपीआरडी के ये संस्करण भौतिक रूप में आयोजित किए जा रहे हैं और विशेष रूप से हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) के सात स्तंभों से परस्पर जुड़े हुए वेब पर केंद्रित हैं।
आईपीआरडी के प्रत्येक संस्करण में आईपीओआई द्वारा पहचाने गए सात घटक- लाइन्स-ऑफ-थ्रस्ट पर क्रमिक रूप से चर्चा करने का प्रयास किया जाता है ताकि सागर (SAGAR) को ‘द्वितीय-क्रम-विशिष्टता’ प्रदान की जा सके। उसी के अनुरूप आईपीआरडी-2022 का विषय “हिंद-प्रशांत महासागर पहल का संचालन” था जबकि 2023 संस्करण में “हिंद-प्रशांत समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी पर भू-राजनीतिक प्रभाव” पर चर्चा की गई थी।
‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति और सुरक्षा’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए आईपीआरडी का 2024 संस्करण आईपीओआई वेब के दो महत्वपूर्ण स्तंभों अर्थात ‘समुद्री संसाधन’ और ‘संसाधन साझाकरण’ के कई आयामों का पता लगाएगा और उन पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेगा। इस वर्ष का सम्मेलन इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगा कि किस तरह से पारंपरिक और नए पहचाने गए समुद्री संसाधन समकालीन भू-राजनीति को संचालित कर रहे हैं और निकट भविष्य में इसमें क्या होने की संभावना है।
इसमें मछली के घटते भण्डारण शामिल हैं- साथ ही अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित रूप से मछली पकड़ने की गतिविधियों में वृद्धि भी है, विशेष रूप से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे वाले समुद्री क्षेत्रों में। संसाधन-भू-राजनीति की एक और अभिव्यक्ति कोबाल्ट, लिथियम, निकल और अन्य मुश्किल से मिलने वाले खनिजों के लिए भू-राजनीतिक दौड़ है, साथ ही टेल्यूरियम और नियोडिमियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्व भी हैं जिनकी आवश्यकता लाखों बैटरी, सौर पैनल, पवन टर्बाइन और अन्य ऐसे नवीकरणीय-ऊर्जा उपकरणों के लिए होती है जो जीवाश्म-ईंधन से ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों में सफलतापूर्वक रूपांतरण के लिए आवश्यक हैं।
इसके अलावा हाइड्रोकार्बन जैसे अपतटीय ऊर्जा संसाधन, अपने भू-राजनीतिक महत्व को बनाए रखने की संभावना रखते हैं, वहीं अधिक अपरंपरागत वाले, जैसे गैस हाइड्रेट्स और समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, समुद्र से प्राप्त हाइड्रोजन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भविष्य की भू-आर्थिक रणनीतियों को संचालित करने की संभावना रखते हैं।
आईपीआरडी-2024, वैश्विक रूप से प्रसिद्ध विषय-वस्तुओं के विशेषज्ञों और विशिष्ट वक्ताओं के माध्यम से भारत-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति के व्यापक रुझानों की पहचान करने और नीति-विकल्पों को प्रस्तुत करने की दिशा में प्रयास करेगा। तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में यह भी पता लगाया जाएगा कि किस तरह से सहयोग, सहभागिता और सौहार्द, संसाधन-भू-राजनीति के प्रतिमान के भीतर वैकल्पिक मार्ग प्रदान कर सकते हैं। इस बड़े सम्मेलन का एक विशेष आकर्षण भारत के माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह का स्मारक संबोधन होगा।
आईपीआरडी-2024 में 20 से अधिक देशों से आए दिग्गजों के एक समूह के अलावा विशेष रूप से प्रतिष्ठित वक्ताओं द्वारा विशेष संबोधनों की एक श्रृंखला भी शामिल होगी, जिनसे सम्मेलन के विषय पर आकर्षक क्षेत्रीय दृष्टिकोण रखे जाने की उम्मीद है। हमारे छात्र समुदाय, अनुसंधान विद्वानों, प्रतिष्ठित नागरिकों, शिक्षाविदों और चिकित्सकों, राजनयिकों के सदस्यों और भारत और विदेश के थिंक-टैंकों की सक्रिय भागीदारी इस आयोजन को विशेष उत्साह प्रदान करेगी।