Wednesday, January 8, 2025
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भारत के साथ लगातार तल्खी व डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत ने जस्टिन ट्रूडो के 9 साल का शासन खत्म किया

ओटावा (हि.स.)। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने लिबरल पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री पद से सोमवार को इस्तीफा दे दिया। लिबरल पार्टी के नए नेता चुने जाने तक ट्रूडो प्रधानमंत्री बने रहेंगे। 2015 में 44 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने ट्रूडो अपनी नीतियों और फैसलों के कारण अपने ही देश में लगातार अलोकप्रिय हो रहे थे, जिसके कारण लिबरल पार्टी के भीतर भी उनपर इस्तीफे दबाव था। इसने ट्रूडो के 9 वर्षों के शासनकाल के अंत का रास्ता साफ कर दिया।

ट्रूडो-ट्रंप के रिश्ते

20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका में दोबारा ताजपोशी होगी, उससे पहले ट्रूडो ने इस्तीफे की घोषणा की। ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान भी ट्रूडो के साथ उनके रिश्ते खराब थे, जबकि इस बार चुनावी जीत के बाद ट्रम्प ट्रूडो पर लगातार हमलावर थे। उन्होंने कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ की धमकी दी है। ट्रंप कई बार ट्रूडो को कनाडा का गवर्नर बताते हुए तंज कसते रहे हैं।

ट्रूडो की जगह कौन

लिबरल पार्टी के नेता के रूप में ट्रूडो के इस्तीफे के बाद चर्चा तेज है कि उनकी जगह कौन लेगा। इसी साल अक्टूबर में कनाडा में चुनाव होने वाले हैं। जस्टिन ट्रूडो ने अपने पद और पार्टी नेता के रूप में इस्तीफे की घोषणा के साथ अगले चुनाव में अपनी दावेदारी को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि वो कनाडा में लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं हो सकते हैं। ऐसे में ट्रूडो के जगह जिन नेताओं के नाम चर्चाओं में हैं उनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड, मार्क कार्नी, कनाडा की विदेश मंत्री मेलनी जोली के नाम शामिल हैं।

ट्रूडो के जाने से भारत से रिश्ते सुधरने की उम्मीद

ट्रूडो के इस्तीफे के साथ भारत-कनाडा के लगातार बदतर हो रहे रिश्तों के भी दोबारा पटरी पर आने की उम्मीदें बढ़ती दिख रही हैं। इस उम्मीद को इस बात से बल मिलता दिख रहा है कि इस साल होने वाले चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोइलिवरे के प्रधानमंत्री बनने की पुरजोर उम्मीद जताई जा रही है जो भारत के साथ अच्छे रिश्तों की वकालत करते रहे हैं।

ट्रूडो के कारण बिगड़े भारत-कनाडा संबंध

वर्ष 2015 में ट्रूडो के प्रधानमंत्री बनने के बाद से कनाडा-भारत संबंधों में लगातार उतार ही आता रहा। बीच- बीच में खालिस्तान समर्थकों से ट्रूडो की बढ़ती गर्मजोशी, भारत-कनाडा संबंधों के लिए आपदा साबित होती गई। खास तौर पर साल 2018 में ट्रूडो की भारत यात्रा विवादों में तब घिर गई जब एक भारतीय मंत्री की हत्या के प्रयास के दोषी जसपाल अटवाल को कनाडाई उच्चायोग ने रात्रिभोज के लिए निमंत्रण दे दिया। इस यात्रा में भारत-कनाडा ने नए निवेश और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संयुक्त ढांचे की घोषणा की। कनाडा ने आतंकवाद पर बब्बर खालसा इंटरनेशनल जैसे खालिस्तान समर्थक आतंकी समूहों का भी जिक्र किया लेकिन कुछ समय बाद ट्रूडो सरकार ने इससे खालिस्तानी उग्रवाद की बात हटा दी। इसके बाद साल 2020 में किसान आंदोलन पर ट्रूडो की टिप्पणी ने दोनों सरकारों के बीच कड़वाहट और बढ़ा दी।

साल 2024 में सर्वाधिक खराब संबंध

ट्रूडो के पूर्वाग्रह ने दोनों देशों के बीच बिगड़ते संबंधों ने आग में घी का काम किया। विशेषकर खालिस्तानी हरदीप निज्जर की हत्या को लेकर ट्रूडो ने बिना सबूत जिस तरह भारत और उसके शीर्ष नेताओं पर बेहद गंभीर आरोप लगाए, उसने रही-सही कसर पूरी कर दी। सितंबर 2023 में ट्रूडो ने भारतीय अधिकारियों पर कनाडा में खालिस्तानी हरदीप निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया। अक्टूबर 2024 में कनाडा ने खालिस्तानियों पर हमलों के मामलों में कई भारतीय राजनयिकों की जांच की बात कही। कनाडा का आरोप था कि भारतीय राजनयिक और खुफिया अधिकारी, विदेशों में खालिस्तानियों को मारने के लिए गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के साथ काम कर रहे हैं। कनाडा ने इसमें भारत के गृह मंत्री अमित शाह का नाम भी शरारतन बेवजह घसीट लिया। जिसके बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कनाडा से अपने कई राजनयिकों को वापस बुला लिया। भारत ने कनाडाई राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया।

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