Tuesday, January 7, 2025
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केंद्रीय वस्त्र मंत्री ने पश्चिम बंगाल में किया आईआईएचटी के नए परिसर का उद्घाटन, 33 से बढ़कर 66 हुई सीटों की संख्या

केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के फुलिया में भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान के नए स्‍थायी परिसर का उद्घाटन किया। संस्थान के नए परिसर का निर्माण अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके 5.38 एकड़ भूमि पर 75.95 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है। भवन में स्मार्ट क्लास, डिजिटल लाइब्रेरी तथा आधुनिक और अच्छी तरह से सुसज्जित परीक्षण प्रयोगशालाओं से युक्त आधुनिक बुनियादी ढांचा है। नया परिसर एक आदर्श शिक्षण स्थल होगा तथा हथकरघा और वस्त्र प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में काम करेगा तथा पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और सिक्किम से आने वाले छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करेगा।

गिरिराज सिंह ने अपने उद्घाटन भाषण में हथकरघा बुनकरों के ‘विकास और प्रगति’ के लिए वस्त्र मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के योगदान पर प्रकाश डाला। केंद्रीय वस्त्र मंत्री ने विश्व स्तरीय अवसंरचना वाले इस संस्थान को पश्चिम बंगाल को समर्पित किया और इस संस्थान में पहले वर्ष के लिए सीटों की संख्या मौजूदा 33 से बढ़ाकर 66 करने की घोषणा की। हथकरघा बुनकरों के बच्चों को इस संस्थान में अध्ययन करने और पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और सिक्किम के हथकरघा उद्योग की सेवा करने का अवसर मिलेगा।

केंद्रीय वस्त्र मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आईआईएचटी फुलिया कच्चे माल के रूप में फ्लैक्स और लिनन का उपयोग करके और कोलकाता स्थित एनआईएफटी से डिजाइन से संबंधित जानकारी का उपयोग करके वस्‍त्र मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान देगा। केंद्रीय मंत्री ने पश्चिम बंगाल की हथकरघा बुनाई की विरासत पर भी प्रकाश डाला और कहा कि औद्योगिक क्रांति से पहले मैनचेस्टर में उत्पादित कपड़े की तुलना में हमारे हथकरघा उत्पादों की मांग अधिक थी। बंगाल के हाथ से बुने वस्‍त्रों की बारीकी ऐसी थी कि एक साड़ी को एक छोटी सी अंगूठी के अंदर से गुजारा जा सकता था।

केंद्रीय वस्त्र मंत्री ने कहा ने कहा कि यह आईआईएचटी भवन सिर्फ एक भवन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा प्‍लेटफॉर्म है, जहां से हथकरघा बुनकरों के बच्चे अपने सपने पूरे कर सकते हैं। छात्रों को उच्च कौशल प्रदान करके हथकरघा शिल्प को टिकाऊ बनाया जाएगा और इससे हथकरघा क्षेत्र को वैश्विक पहचान मिलेगी। सादगी, परंपरा और प्रौद्योगिकी का संगम ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने की दिशा में एक संयुक्त कदम है।

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