क्योंकि मैं इक स्त्री हूँ: नंदिता तनुजा

नंदिता तनुजा

हाँ मैं इक स्त्री हूँ
बस इस फ्रेम में लगी
सिर्फ तस्वीर नहीं
भावनाओं से जड़ी हूँ
फ़क्र है मुझे कि मैं इक स्त्री हूँ

आत्मा है मेरा वो फ्रेम
जीवन की सांसे मेरा सौंदर्य
सिर्फ इक तस्वीर नहीं
अपने अस्तित्व में खड़ी हूँ
क्योंकि एहसास है मैं इक स्त्री हूँ

ये आँखें मेरे भाई का प्यार
चेहरे की रौनक पापा का सार
सिर्फ इक तस्वीर नहीं
अपनी मां की छवि में दिखी हूँ
संस्कार सब है याद मैं इक स्त्री हूँ

हर उम्र की हद है हद की हद
हर हद को समझ फिर बढ़ी हूँ
सिर्फ इक तस्वीर नहीं
अपने स्वाभिमान की वो छड़ी हूँ
काल्पनिक नहीं बस इक स्त्री हूँ

कि नंदिता हुनर सादगी लिपटे
सर पे ओढ़ी आज भी शर्म की चूनर हूँ
क्योंकि मैं इक स्त्री हूँ