प्रीत: प्रीति

प्रीति
चंडीगढ़

आओ फिर से एक, हो जाते हैं
गिले-शिकवे दूर कर लेते हैं
दूर कहीं एकांत बैठ
ग़म और खुशियां बाँट लेते हैं

फिर से पुराने पन्ने पढ़ लेते हैं
फिर से पुरानी यादें,ताज़ा कर लेते हैं
आओ फिर से एक हो जाते हैं
फिर से रिश्ता जोड़ लेते हैं

बिन बोले सब कह जाए
नैनों से कर ले बाते
पाक पवित्र रूहों का रिश्ता जोड़ ले
जन्म-जन्म का नाता जोड़ ले
आओ फिर से एक हो जाए
फिर से वहीं प्रीत लगाएं

क्रोध की भावना भूल
प्रीत से प्रीत लगाएं
फिर से चांद की चांदनी में खो जाए
फिर से वहीं राग गुनगुनाए
आओ फिर से एक हो जाते हैं
अपना रिश्ता अटूट कर लेते है