भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह विश्व विदित है। भारत की 131 करोड़ की जनसंख्या दुनिया के दूसरे नम्बर पर आती है। प्रति व्यक्ति को स्वस्थ रहने हेतु प्रति दिन 900 ग्राम खाद्यान की आवश्यकता होती है। हमारे देश में 19,66,080 वर्ग किलोमीटर की कृषि उपजाऊ भूमि उपलब्ध है, पर सूखा और सिंचाई की कमी के कारण मात्र 35% ही खेती हो पाती है। हम केवल 445 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से खाद्यान ही उपजा पाते है। शेष कृषि भूमि खाली पड़ी रहती है।
इसका आशय एकदम स्पष्ट है कि आबादी के अनुसार हम उनकी खाद्यान्न आवश्यकता के अनुपात में मात्र आधा ही पैदा कर पा रहे हैं। देश में यही एक भुखमरी की वजह है, आधी आबादी की आवश्यकता तो कृषि से पूरी होती है, बाकी आधी 50% ज़रुरत में से 30% हम मांस, मछली, अंडा, फल, फूल व चिकन तथा उपवास आदि से पूरा कर लेते हैं, किंतु शेष बची 20% देश की जनता कुपोषण का शिकार होती है।
दुनिया में मौसम के रुख के अनुसार यदि हम रहते नहीं चेते तो बेतहाशा बढती आबादी के लिये खाद्यान जुटाने अक्षम साबित होंगे। आने वाले 10 वर्षों में हमारी आबादी 150 करोड़ का आंकडा छू लेगी और कुपोषण का अनुपात बढ़ जायेगा।
यदि हम नदियों आपस में जोड़ कर नदी माला बना लें और कृषि के प्रति रोचकता दिखायें तथा फलदार व आयुषयुक्त पौधारोपण करें, साथ ही पशुपालन नीति को प्रभावी बना लें तो आने वाली भुखमरी से छूटकारा पा लेंगे। पशुपालन से जैविक खाद व दूध मिलेगा तथा पौधारोपण से आआयुर्वेद की दवाई बनेगी, ज़िससे लोग आरोग्य होंगे व अंग्रेजी दवाओं से मुक्ती मिलेगी, देश का पैसा बचेगा।
केवल नरेगा और मनरेगा पर भारी भरकम पैसा लुटाकर हम देश का भला कतई नहीं कर पायेंगे।
हम जानते ही नहीं बल्कि मानते भी हैं, कि अब हमारे देश का नेतृत्व एक कुशल व योग्य व्यक्ति के हाथ में है, परन्तु अब नीतियों को बिना समय गंवाए प्रभावी रूप से लागू करने की आवश्यकता है। तभी देश के उज्जवल व मजबूत भविष्य की कामना की जा सकती है, किंतु इसके लिये दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी को सख्त ज़रुरत है। तभी हम एक भारत व श्रेष्ट भारत की कल्पना को मूर्त रुप दिया जा सकता है।
-वीरेन्द्र तोमर