चैत्र नवरात्रि नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। माँ दुर्गा के पहले स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता हैं। नवरात्र के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है। माँ शैलपुत्री का पूजन और आराधना बेहद ही शुभ फलदायी माना जाता है। माँ शैलपुत्री का स्वरूप बहुत ही मनोहारी और ममतामयी है, माँ के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल धारण किए माँ वृषभ पर विराजमान है। माँ की आराधना के दौरान इस श्लोक का जाप मनचाहा फल प्रदान करता है-
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री को गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है तथा शरीर निरोगी रहता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।