चैत्र मास की द्वितिया तिथि को माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल सुशोभित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ, तप का आचरण करने वाली होता है, शास्त्रों में माँ ब्रह्मचारिणी को हिमालय की पुत्री बताया गया है और हजारों वर्षों तक तपस्या करने पर ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की अधिष्ठात्री माना जाता है इसलिए माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप एक तपस्विनी का है, जिन्हें सभी विद्याओं का ज्ञाता माना जाता है मान्यता है कि माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से निर्बुद्धियों को भी बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है। माँ की आराधना के दौरान इस श्लोक का जाप करें-
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
माँ दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी आराधना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन माँ के इसी स्वरूप की आराधना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।