फागुन को भयो संग
बयारों में घुली भंग
देख के मैं हुई दंग
पिया रंग डारो ना।
कजरा भी शरमाये,
गजरा भी घबराये
अचरा भी लरजाये
ऐसे तो निहारो ना।
तन को जो करे संग
काहे खेलूँ ऐसो रंग
मन को करे मलंग
ऐसो रंग डारो ना।
नयनों में रंग भरे
नेह की तरंग भरे
मन में उमंग भरे
वैसो रंग डारो ना
-शीतल वाजपेयी