केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि महिलाएं पुरुषों से कमजोर नहीं हैं और उन्हें सबरीमाला मंदिर में जाकर प्रार्थना करने का अधिकार होना चाहिए। जब पुरुष मंदिर में जा सकते हैं तो औरतें भी पूजा करने जा सकती हैं। महिलाओं को मंदिर में पूजा करने से रोकना महिलाओं की गरिमा का अपमान है। पीठ ने कहा था कि महिलाओं के प्रवेश से अलग रखने पर रोक लगाने वाले संवैधानिक प्रावधान का लोकतंत्र में कुछ मूल्य है। माहवारी की उम्र वाली महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर रोक के इस विवादास्पद मामले पर अपना रुख बदलती रही केरल सरकार ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह उनके प्रवेश के पक्ष में हैं।
ममुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने एक अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल हैं। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन और अन्य द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर आया है। उच्चतम न्यायालय में मंदिर के बोर्ड त्रावणकोर देवासम ने कहा था कि मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरने वाली महिलाओं का प्रवेश मंदिर में देवता की प्रकृति की वजह से वर्जित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही हैं। त्रावणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनिया भर में अयप्पा जी के कई मंदिर मौजूद हैं और वहां महिलाएं बिना किसी रोक टोक के जा सकती हैं लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव की मौजूदगी की वजह से एक निश्चित उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन लगाया गया है। इस जवाब पर सवाल उठाते हुए उच्चतम न्यायालय ने पूछा था कि यह कैसे तय होगा कि 10 से 50 साल तक की उम्र की महिलाएं ही मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरती हैं। 9 साल या 51 साल की महिला को भी मासिक धर्म हो सकते हैं। इसके जवाब में कहा गया कि यह उम्र सीमा परंपरा के आधार पर तय की गई है।
वहीं उच्चतम न्यायालय में कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने मंदिर में महिलाओं पर लगे प्रतिबंध को छुआछूत से जोड़ा। उन्होंने कहा छुआछूत के खिलाफ अधिकारों में अपवित्रता भी शामिल है। यह दलितों के साथ छुआछूत की भावना की तरह है। गौर हो कि इससे पहले हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महिलाओं पर लगे प्रतिबंध को सही ठहराया था और कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और महिलाएं मासिक धर्म की वजह से ऐसा नहीं कर पाती हैं।