नवरात्र यानि माँ जगतजननी की उपासना का महापर्व। नवरात्र जहाँ आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत विशिष्ट है, वहीं प्राकृतिक रूप से भी इसे विशेष माना जाता है। चाहे चैत्र नवरात्र हो या शारदेय नवरात्र दोनों महापर्व दो ऋतुओं के संधिकाल में मनाए जाते हैं। शारदेय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। वहीं चैत्र नवरात्र में दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि घटती है, ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़े, इसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया। संभवत: इसीलिए कि ऋतु के बदलाव के इस काल में मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कर स्वयं को भीतर से सबल बना सके, ताकि मौसम के बदलाव का असर हम पर न पड़े। इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगतजननी की आराधना-उपासना की जाती है। आध्यात्मिक रूप से नवरात्र का विशेष महत्व है। नौ दिन तक माँ जगतजननी के मुख्य नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है।
आयुर्वेद में उपवास की व्याख्या इस प्रकार की गई है, ‘आहारं पचति शिखी दोषनाहारवर्जितः।‘ अर्थात् जीवनी-शक्ति भोजन को पचाती है। यदि भोजन न ग्रहण किया जाए तो भोजन के पचाने से बची हुई जीवनी-शक्ति शरीर से विकारों को निकालने की प्रक्रिया में लग जाती है। श्रीरामचरितमानस में भी कहा गया है, भोजन करिउ तृपिति हित लागी। जिमि सो असन पचवै जठरागी। इसलिए थोड़े थोड़े अंतराल में व्रत करना लाभकारी है। शारदेय और चैत्र नवरात्रों में नौ दिन व्रत इसलिए रखते हैं, क्योंकि विज्ञान के अनुसार ये दोनों नवरात्र गर्मी और सर्दी की संधि के महत्वपूर्ण महीनों में पड़ते हैं। कहा जाता है कि ऋतु परिवर्तन का समय वह होता है, जब बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया और वायरस अधिक सक्रिय रहते हैं। इस समय संयमित रहकर सात्विक भोजन, कंद-मूल, फल के सेवन को वरीयता दी जाती है, जिससे शरीर को लाभ तो पहुचता है ही और अस्वस्थ हो की संभावना कम होती है, साथ ही मन भी सयंमित रहता है, वहीं नवरात्र में नौ दिन होने वाले विभिन्न अनुष्ठानों के दौरान किये जाने वाले यज्ञ-हवन से निकलने वाले धुएं से वातावरण में उपस्थित बैक्टीरिया-वायरस नष्ट हो जाते हैं।
माँ दुर्गा की उपासना का पर्व इस बार कल 29 सितंबर रविवार से शुरू हो रहा है। माँ दुर्गा इस बार सर्वार्थसिद्धि और अमृत सिद्धि योग में हाथी पर सवार होकर हमारे घर आएंगी। कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि कल रविवार को सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग में होगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से सायंकाल 5:07 बजे तक अमृतसिद्धि योग बन रहा हैं। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त चल का चौघड़िया प्रात: 7:50 से 9:19 बजे तक, लाभ का चौघड़िया प्रात: 9:19 से 10:48 तक, अमृत का चौघड़िया प्रात: 10:48 से 12:17 तक, शुभ का चौघड़िया दोपहर 12:46 से 15:15 तक, अभिजित मुहूर्त दोपहर 11:53 से 12:41 बजे तक रहेगा, हालांकि कलश स्थापना से पूर्व शुभ मुहूर्त के विषय में अपने परिचित के ज्योतिष अथवा पंडित से सलाह लेना उचित होगा।