हमारे सांसद महोदय निराकार हो गए है। अभी-अभी सम्पन्न चुनाव में उन्होंने घोषणा कर दी कि उनका कोई आकार प्रकार नहीं है, न ही कोई रूप रंग है, न ही कोई गुण दोष है। वे निष्काम है। किसी भी प्रकार के विकार से रहित है। उनका शरीर निर्वात का बना है। विज्ञान भी हैरान है, ऐसा कोई मानव आज की दुनिया में भी उपलब्ध है। सांसद महोदय कहते है कि उनसे कोई अनुराग-वैराग्य न करे। उनको किसी का वोट नहीं चाहिए। जिसको वोट देना है वो ‘मोदी’ के नाम पर वोट करे…। ऐसा निष्कपट राजनेता केवल भारतीय राजनीति में हो सकता है। जो एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक केवल मोदी के नाम पर वोट मांगता है।
मैं भी यहीं मानता हूँ कि, अगर कोई गधा चन्दन की लकड़ियों को अपने ऊपर लाद कर निरन्तर उसका बोझ ढोता रहता है तो सत्य मानो, वह भी चन्दन जैसा महकने लगता है, लेकिन पता नहीं कबीर को गधो से क्या तकलीफ थी। वे व्यक्तिगत गुण दोष में उलझे रहे। वे बार बार चन्दन वाले गधे का उपहास उड़ाते रहे। वो बार बार कहते थे कि-
पांडे कौन कुमति तोहि लागी
तू राम न जपहि अभागी।।
वेद पुरान पढ़त अस पांडे, खर चंदन जैसे भारा।
राम नाम तत समझत नाहीं, अंत पडै़ मुखि छारा।।
वेद पढया का यहु फल पांडे, सब घट देखें रामा।
जनम मरन थैं तो तूं छूटै सुफल हहि सब कामा।।
जीव बधत अरु धरम कहत हौ, अधरम कहौ है भाई
आपन तौ मुनि जन बैठे का सनि कहौ कसाई।
नारद कहै व्यास यौं भाषैं, सुखदेव पूछौ जाई।।
कबीर का कहना है, स्वमं के गुण ही मायने रखते है चाहे कोई कितना ही वेद पुराण को पीठ पर लादे घूमा करे, इससे वो पण्डित नहीं बन जाता ।लेकिन आज के दौर में ‘मोदी’ नाम के चन्दन को लादे नेता सांसद जरूर बन जाते है। जैसे कि हमारे सांसद महोदय हैं, जिनसे चन्दन की खुशबू आ रही है…
-संजीव पांडेय