केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्तुत किया। आर्थिक सर्वेक्षण में निवेश एवं बचत के परिदृश्य की मुख्य बातों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित है:
– जीडीपी और घरेलू बचत का अनुपात वर्ष 2003 के 29.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2007 में 38.3 प्रतिशत के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया। हालांकि, इसके बाद यह अनुपात वर्ष 2016 में घटकर 29 प्रतिशत के स्तर पर आ गया।
– वर्ष 2007 और वर्ष 2016 की अवधि में संचयी कमी बचत की तुलना में निवेश की दृष्टि से हल्की रही है, लेकिन निवेश घटकर निचले स्त्र पर आ गया है।
वर्ष 2015-16 तक के लिए उपलब्ध निवेश और बचत के विस्तृवत विवरण (ब्रेक-अप) से पता चला है कि वर्ष 2007-08 और वर्ष 2015-16 की अवधि में कुल निवेश में दर्ज की गई 6.3 प्रतिशत की कमी में 5 प्रतिशत हिस्से दारी निजी निवेश की रही है।
वर्ष 1997 के बाद एशियाई देशों में ही सबसे अधिक बार आर्थिक सुस्तीध आई है। वर्तमान में (वर्ष 2008 के बाद) इन देशों की अर्थव्य वस्थािओं में बचत में सुस्ती3 का दौर देखा जा रहा है। भारत में निवेश में सुस्तीय की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी, जो बाद में और तेज हो गई तथा यह दौर नवीनतम अवधि अर्थात वर्ष 2016 तक कायम रहा।
चूंकि बचत में सुस्तीव की तुलना में निवेश में सुस्ती या कमी विकास की दृष्टि से ज्यांदा हानिकारक होती है, इसलिए अल्पाकवधि में नीतिगत प्राथमिकताओं के तहत निवेश में नई जान फूंकने पर ध्याहन केन्द्रित किया गया है। इसके तहत काले धन को बाहर निकालने के प्रयासों के साथ-साथ सोने को वित्तीतय बचत में तब्दीाल करने को प्रोत्सा्हित कर बचत राशि जुटाई जा रही है। कुल घरेलू बचत में वित्तीवय बचत, जो बाजार प्रपत्रों में बढ़ती रुचि से स्प ष्टर होती है, की हिस्से दारी पहले से ही बढ़ रही है, जिसमें विमुद्रीकरण से काफी मदद मिली है।
निवेश और बचत में सुस्तीि या कमी के रुख के अध्यतयन से जुड़े देशव्याफपी अनुभव से पता चला है कि निवेश में कमी से विकास पर असर पड़ा है, जबकि बचत के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है। नीतिगत निष्कपर्ष यही है कि निवेश में नई जान फूंकने को तत्काहल प्राथमिकता दी जाए, ताकि विकास पर और ज्यायदा दीर्घकालिक असर न पड़े। इसके लिए सरकार ने फंसे कर्जों की समस्या को सुलझाने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण पर अपना ध्याेन केन्द्रित किया है।