लोकसभा के बाद नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में चर्चा के बाद पारित हो गया। राज्यसभा में इसे पारित कराने वोटिंग कराई गई। जहाँ बिल के पक्ष में 125 वोट और विरोध में 105 वोट पड़े। ज्ञात रहे कि 9 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ये बिल लोकसभा में पेश किया था, जहाँ लंबी चर्चा और हंगामे के बीच लोकसभा से ये बिल पास हो गया था। बिल के समर्थन में 311 और विरोध में 80 वोट पड़े थे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पर बोलते हुए कहा कि यह बिल करोड़ों लोगों को सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करेगा। उनका कहना था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को भी जीने का अधिकार है। उनका कहना था कि इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों की आबादी में काफी कमी हुई है, वह लोग या तो मार दिए गए, उनका जबरन धर्मांतरण कराया गया या वे शरणार्थी बनकर भारत में आए।
उन्होंने कहा कि तीनों देशों से आए धर्म के आधार पर प्रताड़ित ऐसे लोगों को संरक्षित करना इस बिल का उद्देश्य है, भारत के अल्पसंख्यकों का इस बिल से कोई लेना-देना नहीं है। राज्यसभा में विधेयक का परिचय देते हुए अमित शाह ने यह भी कहा कि इसका उद्देश्य उन लोगों को सम्मानजनक जीवन देना है जो दशकों से पीड़ित थे।
अमित शाह ने कहा कि देश का बंटवारा और बंटवारे के बाद की स्थितियों के कारण यह बिल लाना पड़ा। उनका कहना था कि 70 सालों तक देश को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया। नरेंद्र मोदी सरकार सिर्फ सरकार चलाने के लिए नहीं आई है देश को सुधारने के लिए और देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए आई है। अमित शाह ने कहा कि हमारे पास 5 साल का बहुमत था, हम भी सत्ता का केवल भोग कर सकते थे किंतु देश की समस्या को कितने सालों तक लटका कर रखा जाए, समस्याओं को कितना कितना बड़ा किया जाये। उन्होंने विपक्षी सांसदों से कहा कि अपनी आत्मा के साथ संवाद करिए और यह सोचिए कि यदि यह बिल 50 साल पहले आ गया होता तो समस्या इतनी बड़ी नहीं होती।
अमित शाह का कहना था कि 2019 के घोषणा पत्र में असंदिग्ध रूप से इस बात की घोषणा की गई थी और यह इरादा जनता के समक्ष रखा गया था कि पड़ोसी देशों के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सीएबी लागू करेंगे, जिसका समर्थन जनता ने किया है। अमित शाह का कहना था कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ यह सबसे बड़ी भूल थी। उन्होंने कहा कि 8 अप्रैल 1950 को नेहरू-लियाकत समझौता हुआ जिसे दिल्ली समझौते के नाम से भी जाना जाता है, में यह वादा किया गया था कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखेंगे किंतु पाकिस्तान में इसे अमल में नहीं लाया गया। भारत ने यह वादा निभाया और यहां के अल्पसंख्यक सम्मान के साथ देश के सर्वोच्च पदों पर काम करने में सफल हुए किंतु तीनों पड़ोसी देशों ने इस वादे को नहीं निभाया और वहां के अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया गया।