चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। माँ चंद्रघंटा का रूप अत्यंत ही सौम्य है। सिंह पर सवार माँ चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अद्र्धचंद्र है, इसलिए माँ को चंद्रघंटा नाम दिया गया है। माँ की दस भुजाएं हैं और दसों भुजाएं में अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हैं।
माँ चंद्रघंटा की उपासना और आराधना से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। माँ चंद्रघंटा अपने हाथों में कमल, कमण्डल, धनुष-बाण, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र धारण किए हुए हैं। इनके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजडि़त मुकुट शीर्ष पर विराजमान है।
माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों को असीम शांति और सुख सम्पदा का वरदान देती है। माँ चंद्रघंटा के आशीर्वाद से भक्त से सभी पाप नष्ट हो जाते है और उसकी राह में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती है। माँ चंद्रघंटा के पूजन से सभी दुखों और भय से मुक्ति मिलती है।
इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में व्यस्थित रहता है जहाँ साधक को अलौकिक और दैवीय अनुभूति होती है। माँ चंद्रघंटा की आराधना के दौरान इस श्लोक का जाप करना चाहिए-
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।