लखनऊ (हि.स.)। बिजली कनेक्शन लेने के बाद दो बिलिंग चक्र तक बिजली बिल यदि नहीं मिलता है तो बिजली उपभोक्ता प्रत्येक बिलिंग चक्र के हिसाब से पांच सौ रुपये मुआवजा की मांग कर सकता है। यह विद्युत वितरण संहिता-2005 की धारा 7.7.2 (डी) में यह व्यवस्था प्रावधानित है। इसके लिए उपभोक्ताओं को क्षेत्रीय विद्युत कार्यालय में शिकायत दर्ज कराकर मुआवजे की मांग करनी होगी। यह मशविरा राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने उप्र के विद्युत उपभोक्ताओं को दिया है।
उपभोक्ता परिषद के संज्ञान में राजधानी लखनऊ में सामने आए 46 किलोवाट के एक विद्युत उपभोक्ता का मामला सामने आया, जिसमें उपभोक्ता को एक साल तक बिजली का बिल नहीं दिया गया। इसको लेकर उपभोक्ता परिषद ने बिजली उपभोक्ताओं को कानून के तहत मुआवजा मांगे जाने की सलाह दी। उपभोक्ता परिषद ने कहा कि प्रदेश में इस तरह की लापरवाही देखने को मिल रही है, जिसके प्रति उपभोक्ताओं को जागरूक होना होगा। उपभोक्ता परिषद ने कहा कि उपभोक्ता बिजली दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं, ऐसे में सभी मामलों में प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं को उपभोक्ता परिषद जागरूक करना चाहता है कि विद्युत वितरण संहिता- 2005 की धारा 7.7.2 (डी) में यह व्यवस्था प्रावधानित है। यदि किसी भी विद्युत उपभोक्ता को बिजली कनेक्शन प्रदान करने की तारीख से दो बिलिंग चक्र के अंतर्गत प्रथम बिल निर्गत नहीं किया जाता तो विलंब के प्रत्येक बिल चक्र के लिए उपभोक्ता को रुपया 500 का मुआवजा देना पड़ेगा।
इसके साथ ही ऐसे मामलों की त्रय मासिक रिपोर्ट भी विद्युत नियामक आयोग को बिजली कंपनियों को सौंपना होगा। ऐसे में वर्तमान में बिलिंग चक्र एक महीने का है। इसलिए प्रदेश में ऐसे सभी विद्युत उपभोक्ता जिनके साथ बिजली कंपनियां इस प्रकार का बर्ताव कर रही है तो सभी विद्युत उपभोक्ता बिजली का संयोजन लेने के उपरांत यदि उन्हें दो महीने तक प्रथम बिल निर्गत नहीं किया जाता तो उसके पश्चात वह विलंब के लिए रुपया 500 प्रति बिल चक्र का मुआवजा अपने क्षेत्रीय दफ्तर में शिकायत कर मांगे।
उत्तर प्रदेश राज विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि उपभोक्ता परिषद प्रदेश के अपने सभी विद्युत उपभोक्ताओं को जागरुक करते हुए उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सजग रहकर इस प्रकार के मामले में बिजली कंपनियों के सामने अपनी बात रखते हुए मुआवजा मांगना चाहिए। उन्हें अगर कहीं भी कोई कठिनाई होती है तो वह उपभोक्ता परिषद के संज्ञान में भी पूरा मामला ला सकते हैं, जहां एक तरफ बिजली कंपनियां राजस्व बढाने के लिए सघन मॉनिटरिंग कर रही है। इसके बावजूद भी इस प्रकार की कार्रवाई से ऐसा प्रतीत होता है कि केवल औपचारिकता निभाने के लिए सदन मॉनिटरिंग की जा रही है। इस पर बिजली कंपनियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि जो भी प्रावधानित व्यवस्था है।