भारत की अंतरिक्ष वेधशाला आदित्य-एल1, जिसे 7 पेलोड के साथ सूर्य का अध्ययन करने के लिए एक सुविधाजनक स्थान पर जाया जा रहा है, ने अपनी यात्रा के लिए उलटी गिनती शुरू कर दी है। इसकी शुरुआत स्वदेशी अंतरिक्ष आधारित दूरबीनों का उपयोग करके सौर कोरोना के संभावित अवलोकनों के बारे में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बीच प्रारंभिक चर्चा से हुई।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) ने शुरू में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा प्रस्तुत किए गए एक छोटे उपग्रह पर लगाए जाने वाले ‘उपयुक्त कोरोनोग्राफ’ पेलोड का प्रस्ताव दिया था। यह ‘उपयुक्त कोरोनोग्राफ’ बाद में दृश्य उत्सर्जन (विज़िबल एमिशन) लाइन कोरोनोग्राफ (वीईएलसी) में परिवर्तित हो गया और अभी भी प्राथमिक पेलोड के रूप में प्रचलित है, यहां तक कि भारत की सौर अध्ययन महत्वाकांक्षाओं का विस्तार हुआ, जिससे यह बहु-संस्थागत सहयोग के साथ एक राष्ट्रीय पहल बन गई।
आईआईए के नेतृत्व में, वीईएलसी को होसाकोटे में सेंटर फॉर रिसर्च एंड एजुकेशन इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीआरईएसटी) के होसाकोटे परिसर में डिजाइन करके जोड़ा गया , और इसे विशिष्ट बनाने के बाद इसका परीक्षण एवं एकीकरण किया गया और फिर इसरो के करीबी सहयोग से वितरित किया गया। केंद्र की एमजीके मेनन प्रयोगशाला के अंदर इस उद्देश्य के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक का एक स्वच्छ कक्ष (भारत का पहला बड़े पैमाने पर “कक्षा 10” स्वच्छ कक्ष) का निर्माण किया गया था। इसरो ने दर्पण और डिटेक्टर बनाए और उन्हें आईआईए को प्रदान किया, जबकि आईआईए ने 26 जनवरी 2023 को पूरा वीईएलसी इसरो को सौंप दिया।
वीईएलसी उच्च रिज़ॉल्यूशन और समय आवृत्ति पर सूर्य के वायुमंडल, कोरोना, को पहले से सूर्य के कहीं अधिक निकट चित्रित करेगा। पेलोड में उच्च परिशुद्धता के 40 अलग-अलग ऑप्टिकल तत्व हैं और इसे अंतरिक्ष में 22 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जाएगा। इसके अलावा, आदित्य-एल1 में प्लाज्मा मापदंडों को मापने के लिए एक पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) इमेजर, दो एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और चार इन-सीटू उपकरण हैं। इन्हें कई अन्य संस्थानों के योगदान से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो-आईएसआरओ) और अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र : खगोलविज्ञान और खगोलभौतिकी (इन्टर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स-आईयूसीएए) के विभिन्न केंद्रों द्वारा बनाया गया है।
सूर्य के बहु-तरंगदैर्घ्य छायांकन (मल्टी-वेवलेंथ इमेजिंग) और वर्णक्रम (स्पेक्ट्रोस्कोपी) चित्रण इस पेलोड की एक अनूठी विशेषता होने के साथ ही यह कोरोना की नैदानिकी का अध्ययन करेगा ताकि कोरोना को गर्म करने और सौर वायु प्रवाह को तेज करने वाली प्रक्रियाओं को समझने, अंतरिक्ष मौसम के लिए चालकों का अध्ययन एवं उनका मापन, कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) की उत्पत्ति, विकास और गतिशीलता की जांच के अतिरिक्त विज्ञान के दो मुख्य संचालक कोरोनल हीटिंग समस्या और उग्र प्लाज्मा इजेक्शन के प्रसार को समझना जो पृथ्वी पर उपग्रहों और संचार नेटवर्क को प्रभावित कर सकते हैं। चूंकि वीईएलसी सूर्य को उसकी सतह के सबसे करीब से देखेगा इसलिए आदित्य-एल1 के कई अन्य पेलोड्स को भी नए कोरोनल मास इजेक्शन और अन्य विस्फोटों के बारे में इसके डेटा की आवश्यकता पड़ेगी।
आईआईए परिसर में स्थापित वीईएलसी पेलोड ऑपरेशंस सेंटर (पीओसी), इसरो भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा सेंटर (आईएसएसडीसी) से अपरिशोधित प्राथमिक डेटा प्राप्त करेगा और वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए उपयुक्त बनाने के लिए इसे आगे संसाधित करेगा। संसाधित डेटा को प्रसार के लिए आईएसएसडीसी को वापस भेजा जाएगा। आईआईए की वैज्ञानिक टीम सूर्य-पृथ्वी संबंध और, अधिक महत्वपूर्ण रूप से, अंतरिक्ष-मौसम प्रभाव की गहरी समझ प्राप्त करने के लिए पृथ्वी की सतह पर क्षेत्रीय केन्द्रों के अवलोकनों के साथ अपने कई पेलोड से आदित्य-एल 1 डेटा का उपयोग करेगी। आईआईए की कोडाइकनाल सौर वेधशाला और गौरीबिदानूर रेडियो वेधशाला इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
आईआईए और डीएसटी के एक अन्य संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एआरआईईएस) ने मिलकर काम करते हुए वीईएलसी उपकरण का उपयोग करके बोर्ड आदित्य-एल1 पर सीएमई का पता लगाने के लिए एक स्वचालित एल्गोरिदम डिजाइन किया। यह अपनी तरह का पहला ऐसा एल्गोरिदम होगा जो चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं से जुड़े गैस के उन विशाल बुलबुलों को ट्रैक करेगा जो सूर्य से निकल कर अंतरिक्ष के मौसम को बाधित करते हैं और भू-चुंबकीय तूफान, उपग्रह विफलताओं और बिजली कटौती का कारण बनते हैं। इस एल्गोरिदम को इसरो द्वारा हार्ड-कोड किया गया है और इसका उपयोग आदित्य-एल 1 बोर्ड पर स्वचालित रूप से सीएमई का पता लगाने के लिए किया जाएगा, जिससे यह इस उद्देश्य के लिए पहले ऑनबोर्ड इंटेलिजेंस एल्गोरिदम में से एक बन जाएगा क्योंकि सूर्य के पिछले नासा या ईएसए मिशनों में इसी तरह का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
भारतीय खगोल भौतिक संस्थान (आईआईए ) और आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एआरआईईएस) ने संयुक्त रूप से वीईएलसी उपकरण के वर्णक्रमीय और सातत्य चैनलों की विशेषता बताई है और कोरोनोग्राफ छवियों में सीएमई का पता लगाने के लिए उन्नत मशीन लर्निंग तकनीकों को लागू किया है। वे सैद्धांतिक अध्ययन भी कर रहे हैं, जिसमें सूर्य में दोलनों और कोरोनल मास इजेक्शन के ऐसे संख्यात्मक सिमुलेशन शामिल हैं, जो आदित्य-एल1 उपकरणों से डेटा की व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
इसरो ने एरीज (एआरआईईएस) में आदित्य-एल1 सहायता प्रकोष्ठ स्थापित करने के लिए एआरआईईएस के साथ भी सहयोग किया है। आदित्य-एल1 सपोर्ट सेल (एएल1एससी) विज्ञान अवलोकन प्रस्ताव तैयार करने और विज्ञान डेटा का विश्लेषण करने में अतिथि पर्यवेक्षकों के लिए एक सामुदायिक सेवा केंद्र के रूप में कार्य करता है। यह सहायता सेल अतिरिक्त उपकरण प्रदान करेगा और उपयोगकर्ताओं को सौर भौतिकी के बारे में प्रशिक्षित करने के साथ ही आईएसएसडीसी/इसरो से डेटा को समझने, डाउनलोड करने और विश्लेषण करने में सहायता प्रदान करेगा। एएल1एससी छात्रों को सूर्य पर होने वाली आधारभूत प्रक्रियाओं, वर्तमान खुली समस्याओं, आदित्य-एल1 मिशन और अवलोकन डेटा विश्लेषण से परिचित कराने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में कार्यशालाएं आयोजित कर रहा है।
आईआईए और एरीज की टीम
आईआईए में वीईएलसी के वर्तमान परियोजना प्रभारी (पीआई) प्रोफेसर आर. रमेश ने 15 संकाय सदस्यों के सौर खगोल विज्ञान समूह और लगभग 20 छात्रों के साथ इसरो को वीईएलसी का विकास और वितरण पूरा किया।
वीईएलसी परियोजना के पूर्व पीआई प्रोफेसर राघवेंद्र प्रसाद: जिन्होंने क्रेस्ट,(सीआरईएसटी) होसाकोटे में डिजाइन, संयोजन, लक्षण वर्णन, परीक्षण और एकीकरण का नेतृत्व किया।
प्रोफेसर जगदेव सिंह: उन्होंने अपनी टीम के साथ, स्वदेशी अंतरिक्ष आधारित दूरबीनों का उपयोग करके सौर कोरोना के संभावित अवलोकनों के बारे में प्राथमिक चर्चा के दौरान प्रारंभिक कोरोनोग्राफ का प्रस्ताव रखा था और इसके प्रारंभिक चरण के दौरान टीम के परियोजना प्रभारी (पीआई) थे।
आईआईए में सौर खगोल विज्ञान समूह के कुल 15 संकाय सदस्य और लगभग 20 छात्र सहित प्रो. एस.पी. राजगुरु, प्रो. बी. रवींद्र, डॉ. पियाली चटर्जी, डॉ. जयंत जोशी, डॉ. सी. कथिरावन, डॉ. वागीश मिश्रा, डॉ. के. नागराजू, डॉ. वमारेड्डी पंडिती, डॉ. तन्मय सामंत, और डॉ. एबेनेज़र चेलासामी और डॉ. मंजूनाथ हेगड़े I
एस. नागाभूषण , एस. कथिरावन, अमित कुमार, पी.यू. आईआईए के कामथ ने बड़ी संख्या में आईआईए के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के साथ वीईएलसी के मैकेनिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंपोनेंट असेंबली और परीक्षण का नेतृत्व किया और जो वीईएलसी के हर चरण में शामिल रहे हैं ।
डॉ. शशिकुमार राजा ने वीईएलसी और ग्राउंड चेक-आउट की उपग्रह एकीकरण गतिविधियों का नेतृत्व किया और डॉ. मुथु प्रियाल ने वीईएलसी के लिए डेटा पाइपलाइन के विकास का नेतृत्व किया है।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज-एआरआईईएस) के निदेशक प्रोफेसर दीपांकर बनर्जी और एरीज़ के ही डॉ. वैभव पंत ने एरीज़ में सौर भौतिकी समूह को 15 सदस्यीय स्वतंत्र सौर भौतिकी समूह में विकसित किया था, जो आदित्य-एल1 के डेटा का उपयोग करने के लिए तैयार था। उन्होंने डॉ. रितेश पटेल (अब साउथ वेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, यूएसए में पोस्टडॉक) के साथ मिलकर आदित्य-एल1 बोर्ड पर कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) का पता लगाने के लिए पहला स्वचालित एल्गोरिदम डिजाइन किया।
डॉ. कृष्णा प्रसाद सयमुंथला के साथ-साथ एरीज में 13 पीएचडी छात्र और पोस्टडॉक्स जो वर्तमान में आदित्य-एल1 मिशन से संबंधित सौर भौतिकी के विभिन्न क्षेत्रों पर शोध कर रहे हैं।
संदर्भ के लिए लिंक: