Monday, November 25, 2024
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बिजली कर्मियों को वेतन से ज्यादा मिलते हैं आश्वासन, 23 वर्षों से लंबित मांगों का आज तक नहीं हुआ समाधान

वर्तमान में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाने वाले बिजली विभाग के कर्मियों की मांगों का स्थाई समाधान न तो सरकार के पास है और न ही कंपनी प्रबंधन के पास, स्थिति तो ये हो चुकी है कि अपनी मांगों के लिए बिजली कर्मी इतने ज्ञापन-आवेदन देते हैं कि उन्हें वेतन से ज्यादा आश्वासन मिल रहे हैं। मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि संघ पदाधिकारियों की एक बैठक 26 जनवरी को आयोजित की गई थी, जिसमें पदाधिकारियों ने बिजली कर्मियों की वर्षों से लंबित मांगों पर चर्चा की।

बैठक में आउटसोर्स कर्मी, मीटर रीडर, संविदा एवं नियमित कर्मचारियों की मांगें जैसे अनुकंपा नियुक्ति, फ्रिंज बेनिफिट, प्रमोशन, वेतन विसंगति, नियमितीकरण, संविलियन, ग्रह नगर स्थानांतरण, शिफ्ट ड्यूटी की विसंगति, कंपनी टू कंपनी स्थानांतरण, संविदा नीति जैसी अनेक मांगों पर चर्चा की गई।

हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि 1 सितंबर 2000 को विद्युत मंडल के द्वारा एक आदेश जारी कर वित्तीय स्थिति खराब होने की वजह से अनुकंपा नियुक्ति पर रोक लगा दी गई थी। उस समय कांग्रेस की सरकार थी, तब विद्युत मंडल के पास प्रतिमाह 260 करोड़ रुपए आय आती थी, लेकिन आज प्रतिमाह है 1500 करोड़ से ज्यादा राजस्व आय आती है और नियमित कर्मचारी भी सिर्फ 20 प्रतिशत ही बचे हैं।

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा रही है, जबकि मृत बिजली कर्मियों के आश्रितों ने अनुकंपा नियुक्ति को लेकर शक्ति भवन के समक्ष 1760 दिनों का धरना भी दिया था, मगर प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा नई अनुकंपा नीति लागू कर मौतों का बंटवारा कर दिया गया और आज भी हजारों अनुकंपा आश्रित दर दर की ठोकरें खा रहे हैं।

हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1999 तक विद्युत कर्मचारियों को सभी सुविधाएं मिलती थी, लेकिन वर्ष 2002 में जब कंपनीकरण हुआ, उसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा तकनीकी कर्मचारियों की मांगें फ्रिंज बेनिफिट, प्रमोशन, वेतन विसंगति, सेवानिवृत्त कर्मचारियों का डीआर, आउटसोर्स कर्मियों एवं मीटर रीडरों का संविलियन, 45 वर्ष के आउटसोर्स कर्मियों को नौकरी से न निकालना, संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण, कंपनी टू कंपनी स्थानांतरण नीति बनाने जैसी मांगें वर्षों से लंबित हैं, एक भी मांग का स्थाई समाधान नहीं किया गया। कंपनी प्रबंधन द्वारा मांगों का स्थाई समाधान करने की बजाए आश्वासन देकर टाल दिया जाता है।

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा अलग से कैबिनेट बुलाकर आउटसोर्स कर्मियों के लिए आदेश किए गए थे कि जिन्होंने आईटीआई या ओवरहेड किया है उन सभी को ₹1000 रुपया जोखिम भत्ते के रूप में दिए जाएंगे उनका भी विद्युत कंपनी प्रबंधनों के द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है। किसी को दिया जा रहा है किसी को नहीं दिया जा रहा है।

इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा संविदा कर्मचारियों की महापंचायत बुलाकर घोषणा की थी कि संविदा कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों की भांति सारी सुविधाएं दी जावेगी, लेकिन आज तक ऐसा कोई भी आदेश विद्युत कंपनियों के द्वारा नहीं निकाला गया और ना ही संविदा कर्मचारियों के लिए 2023 की कोई नीति के आदेश ही किए गए।

संघ के राम समझ यादव, शंभू नाथ सिंह, रमेश रजक, एसके मौर्य, एस के शाक्य, शशि उपाध्याय, ख्यालीराम, महेश पटेल, राजकुमार सैनी, लखन सिंह राजपूत, केएन लोखंडे, अजय कश्यप, मोहन दुबे, इंद्रपाल सिंह, संदीप यादव, पवन यादव, विपतलाल विश्वकर्मा, शंकर यादव, राजेश, राम केवल यादव, जीके कोस्टा, बीपी सिंह, असलम खान, रतिपाल यादव, अमीन अंसारी, दशरथ शर्मा, मदन पटेल, राजेश यादव आदि ने प्रदेश के मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री, प्रमुख सचिव ऊर्जा एवं विद्युत कंपनी प्रबंधन से मांग की है कि 23 वर्षों से लंबित मांगों का यथाशीघ्र समाधान किया जाए।

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