नई दिल्ली (हि.स.)। कोविशील्ड वैक्सीन साइड इफेक्ट्स को लेकर एक बार फिर चर्चा में है। यूके की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार लंदन के कोर्ट में स्वीकार किया है कि उसकी कोरोना वायरस के खिलाफ लगने वाली वैक्सीन से दुर्लभ मामलों में गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इस वैक्सीन के फायदे अधिक और नुकसान बेहद कम हैं, इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। इस पर ज्यादा हो हल्ला मचाने की भी आवश्यकता नहीं है।
अखिल भारतीय आयुविर्ज्ञान संस्थान (एम्स) के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने बताया कि इस विवाद में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी भी दवाई के साइड इफेक्ट्स होते हैं, लेकिन उसके लाभ ज्यादा और नुकसान बेहद कम होते हैं। इसलिए इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है।
आईएमए के पूर्व महासचिव डॉ. नरेन्द्र सैनी बताते हैं कि सभी दवाइयों के साइड इफेक्ट होते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम सभी दवाएं लेना बंद कर दें। कोविशील्ड ने उस समय कोरोना से बचाव में काम किया, तो कुछ साइड इफेक्ट्स भी सामने आए हैं। लेकिन इसके फायदे अधिक हैं और नुकसान कम है। कोई भी वैक्सीन को बनाने में सालों लगते हैं। अमूमन करीब दस साल में जा कर वैक्सीन ट्रायल पूरे होते हैं, तब जाकर मार्केट में आती है लेकिन कोरोना काल ऐसा काल था, जहां लोगों की जान को देखते हुए वैक्सीन तैयार की गई और करोड़ों लोगों की जान बची। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स का पता चला है। अब चिकित्सक इस तरह से भी बीमार का इलाज करने में सक्षम होगा और आगे शोध किए जा सकेंगे।
उल्लेखनीय है कि फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोविशील्ड के गंभीर साइड इफेक्ट्स में टीटीएसआई यानी थ्रोम्बोसिस के साथ थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम का जिक्र किया। कंपनी के कहा कि उसका टीका बहुत ही दुर्लभ मामलों में, टीटीएस का कारण बन सकता है। इस स्थिति में प्लेटलेट काउंट घटने और खून के थक्के जमने जैसी समस्याएं आ सकती हैं। भारत में इस वैक्सीन को कोविशील्ड के नाम से जानते हैं, जिसका भारत में निर्माण पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा किया गया था।