कोविड-19 की वजह से देश व्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न तमाम बाधाओं के बावजूद सरकारी एजेंसियों ने इस बार 24 मई तक 341.56 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की जबकि पिछले साल यह आंकडा 341.31 लाख मीट्रिक टन था।
गेहूं की कटाई आम तौर पर मार्च के अंत में शुरू होती है और अप्रैल के पहले सप्ताह में सरकारी एजेंसियों द्वारा इसकी खरीद शुरू हो जाती है। हालांकि 24 और 25 मार्च की आधी रात से देशव्यापी लॉकडाउन शुरु हो जाने की वजह से सभी गतिविधियां रुक गई थीं। इस बीच फसल तब तक पक चुकी थी और कटाई के लिए तैयार थी। ऐसे हालात को देखते हुए भारत सरकार ने लॉकडाउन अवधि के दौरान कृषि और उससे संबंधित गतिविधियां आरंभ करने की छूट दे दी। ऐसे में अधिकांश राज्यों में 15 अप्रैल से गेहूं की खरीद प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। हरियाणा में इसके 20 अप्रैल से थोड़ीसे शुरु होने की संभावना है।
कोरोना महामारी के दौरान समूची गेहूं खरीद प्रक्रिया को सुरक्षित तरीके से क्रियान्वित किया जाना सबसे बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती से निपटने के लिए सुनियोजित बहुस्तरीय रणनीति बनाई गई। प्रौद्योगिकी के माध्यम से लोगों को संक्रमण से बचाव के उपायों तथा परस्पर दूरी बनाए रखने के नियमों के प्रति जागरुक बनाया गया। खरीद केन्द्रों पर किसानों की भीड़ न जुटे इसके लिए ऐसे केन्द्रों की संख्या बढ़ाई गई।
ग्राम पंचायत स्तर पर सभी तरह के सुविधाओं वाले नए केन्द्र भी स्थापित किए गए और खास तौर से गेहूं खरीद वाले प्रमुख राज्यों जैसे पंजाब में इनकी संख्या 1836 से 3681, हरियाणा में 599 से 1800 और मध्य प्रदेश में 3545 से 4494 हो गयी। प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए, किसानों को अपनी उपज लाने के लिए विशिष्ट तिथियां और स्लॉट प्रदान किए गए जिससे खरीद केन्द्रों में भीड़भाड़ से बचने में मदद मिली। इन केन्द्रों पर नियमित रूप से परस्पर दूरी बनाए रखने के नियम का कड़ाई से पालन किया गया और साफ सफाई के काम भी नियमित रूप से जारी रखे गए। पंजाब में, प्रत्येक किसान को अपनी गेहूं की खेप लाकर रखने के लिए खरीद केन्द्रों पर पहले से ही स्थान का आवंटन कर दिया गया था। आवंटित ऐसे स्थान पर किसी और को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। दैनिक नीलामी के दौरान केवल उन लोगों को यहां उपस्थित होने की अनुमति थी जो सीधे तौर पर खरीद प्रक्रिया से जुड़े हुए थे।
कोरोना वायरस के फैलने के खतरे के अलावा गेहूं की खरीद प्रक्रिया में एजेंसियों के सामने तीन और बड़ी चुनौतियां भी थीं। सभी जूट मिलें बंद हो जाने के कारण जूट की बोरियों का उत्पादन रुक गया था, जिससे खरीदे गए गेहूं को भरने के लिए इनकी अनुपलब्धता बड़ा संकट पैदा कर रही थी। ऐसे में बड़े सख्त गुणवत्ता मानकों के साथ तैयार प्लास्टिक के थैलों का इस्तेमाल कर इससे निपटा गया। निरंतर निगरानी और समय पर किए गए उपायों के माध्यम से, यह सुनिश्चित किया गया कि देश में कहीं भी पैकेजिंग सामग्री की कमी के कारण खरीद प्रक्रिया बंद न होने पाए।
सभी प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश हो जाने से खुले में काट कर रखे गए गेहूं के खराब हो जाने का खतरा पैदा हो गया था। किसानों के सामने समस्या यह आ गई कि अगर गेहूं थोड़ाभी खराब हो गया तो यह खरीद प्रक्रिया के लिए तय मानकों के अनुरूप नहीं रह जाएगा और ऐसे में इसकी बिक्री नहीं हो पाएगी। किसानों को इस समस्या से बाहर निकालने के लिए भारत सरकार और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने तुरंत कदम उठाया और उपज के गुणवत्ता मानक दोबारा तय किए ताकि उपभोक्ताओं के लिए न्यूनतम गुणवत्ता आवश्यकताओं वाले ऐसे गेहूं की खरीद सुनिश्चित की जा सके।
तीसरी बड़ी चुनौती श्रमिकों की कमी तथा कोराना वायरस को लेकर आम लोगों में पैदा हुआ डर था। इसका समाधान राज्य प्रशासन द्वारा स्थानीय स्तर पर कई प्रकार के प्रभावी उपायों के जरिए किया गया। सभी श्रमिकों को मास्क, सैनिटाइज़र आदि जैसी पर्याप्त सुरक्षा सामग्री उपलब्ध कराई गई। इसके अलावा उनकी सुरक्षा के लिए कई अन्य एहतियाती उपाय भी किए गए।
भारत सरकार, एफसीआई, राज्य सरकारों और उनकी एजेंसियों द्वारा किए गए इन समन्वित प्रयासों से, सभी ऐसे राज्यों में गेहूं की खरीद आसानी से की जा सकती है जहां अतिरिक्त पैदावार हुई है। इससे किसानों की मदद के साथ ही केन्द्रीय पूल में गेहूं का अतिरिक्त भंडारण हो सकेगा।