भूवैज्ञानिकों ने हिमालय के सिवनी क्षेत्र या लद्दाख में स्थित सिंधु सिवनी क्षेत्र को टेक्टोनिक रूप से सक्रिय पाया है। यह वह क्षेत्र है जहां पर भारतीय और एशियाई प्लेट आपस में मिलती है। नई खोज के पहले इस इलाके को बंद क्षेत्र के रूप में जाना जाता था।
इस खोज से संभावना है कि भूकंप अध्ययन में अहम बदलाव आएंगे। खास तौर से भूकंप के अनुमान, पहाड़ों के विकास और उसके भूगर्भीय ढांचे को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
भारत सरकार के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाले, स्वायत्त संस्थान देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह नई खोज की है।
वैज्ञानिकों ने हिमालय के सिवनी क्षेत्र के विस्तृत रूप से भौगोलिक अध्ययन में यह पाया है कि वास्तव में यह इलाका बंद क्षेत्र न होकर सक्रिय रूप से टेक्टोनिक क्षेत्र है। वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन हिमालय के सबसे सुदूर स्थित लद्दाख क्षेत्र में किया है। यह अध्ययन हाल ही में टेक्नोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
भूवैज्ञानिकों ने पाया है कि जहां नदियां ऊंचे उठे इलाके से जुड़ी हुई हैं, वहां पर गाद के इलाके झुके हुए और उनकी सतह टूटी हुई है। इसके अलावा चट्टानों का आधार काफी कमजोर है। जिसकी वजह से उसमें टूट भी होती रहती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि काफी उथली घाटियां बन गई हैं।
इन चट्टानों का देहरादून स्थित प्रयोगशाला में ऑप्टिकली स्टीमुलेटेड ल्यूमिनेससेंस के जरिए अध्ययन किया गया। जहां पर भूकंप की आवृत्ति और पहाड़ों की ऊंचाई घटने की दर का अध्ययन किया गया। इन भौगोलिक गादों का अध्ययन ल्यूमिनेससेंस डेटिंग विधि से किया जाता है।
प्रयोगशाला के आंकड़ों और भौगोलिक क्षेत्र के अध्ययन से यह बात सामने आई है कि सिंधु सिवनी इलाके में सक्रिय नई टेक्टोनिक क्षेत्र 78000 से 58000 वर्ष से सक्रिय है। हाल ही में 2010 में अपशी गांव में आए कम तीव्रता वाले भूकंप की वजह चट्टान का टूटना था।
हिमालय को मुख्य रूप से मेन सेंट्रल थ्रस्ट, द मेन बाउंड्री थ्रस्ट और मेन फ्रंटल थ्रस्ट से निर्मित माना जाता है। जो कि उत्तर की ओर झुकने वाली थ्रस्ट हैं। अभी तक की स्थापित मान्यता के अनुसार एमएफटी थ्रस्ट को छोड़कर सभी बंद थी। ऐसे में हिमालय में जो भी बदलाव होते हैं उसका जिम्मेदार एमएफटी को माना जाता था।
नई खोज इस बात का खुलासा करती है कि सिवनी क्षेत्र की पुरानी परतें सक्रिय टेक्टोनिक प्लेट हैं। ऐसे में मौजूदा हिमालय के विकास के मॉडल को नए सिरे से गंभीर रूप से दोबारा अध्ययन करने की जरूरत है। जिसमें नई तकनीकी और बृहत भौगोलिक आंकड़े का इस्तेमाल किया जा सकेगा।