Saturday, December 28, 2024
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अंधेरे की ओर ले जा रही जमीनी हकीकत से बिजली कंपनी प्रबंधन की अनभिज्ञता और अधिकारियों की चुप्पी

आज के समय में बिजली के बिना कोई भी काम नहीं हो सकता, घर से लेकर उद्योग तक पूरी तरह बिजली पर निर्भर है। जैसे-जैसे देश-प्रदेश और समाज उन्नति कर रहा है, वैसे-वैसे बिजली की खपत बढ़ने के साथ ही इसके उपभोक्ताओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है।

खपत और उपभोक्ताओं की संख्या में इजाफा होने के साथ ही विद्युत व्यवस्था का संचालन और रखरखाव करना भी जरूरी है, ताकि निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। इसी के तहत एमपी की सभी विद्युत वितरण कंपनियां निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति का दावा भी करती हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि क्या सच में ऐसा है?

विद्युत जानकारों का कहना है कि अन्य क्षेत्रों में आधुनिकीकरण के कारण मानव संसाधन की आवश्यकता कम हो सकती है, लेकिन बिजली क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जहां बिना मानव संसाधन के इसका त्रुटिरहित संचालन करना असंभव है। फ्यूज ऑफ कॉल से लेकर रखरखाव तक आपको कार्मिकों की आवश्यकता होगी ही, इसके बिना विद्युत व्यवस्था संभालना नामुमकिन है। मशीनों और रोबोटों के भरोसे इसका संचालन करने का विचार ही हास्यास्पद है।

गौरतलब है कि आज एमपी में लभभग 1.3 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं, लेकिन इन उपभोक्ताओं को सेवा देने के लिए कुछ हजार मैदानी कर्मचारी ही कार्यरत हैं, इनमें नियमित, संविदा और आउटसोर्स कर्मियों को जोड़ लें तो भी कुल संख्या एक लाख भी नहीं पहुंचती। तो क्या ये मान लिया जाए की बिजली कंपनी प्रबंधन जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ है या मैदानी अधिकारी प्रबंधन को जमीनी हकीकत से अवगत नहीं कराते।

इस संबंध में मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि बिजली कंपनियों में मैदानी कर्मचारियों और संसाधनों की बेहद कमी है। उन्होंने बताया कि संघ प्रतिनिधियों और मैदानी अधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान ये बात अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि मैनपावर की अत्याधिक कमी है। हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि कंपनियों में नियमानुसार करंट का कार्य करने वाले नियमित कर्मचारी बहुत ही कम बचे हैं, ऐसे में मैदानी अधिकारी नियमों का उल्लंघन कर दबाव बनाकर आउटसोर्स कर्मियों से करंट का कार्य करवाते हैं, जो अक्सर ही उनके लिए जानलेवा साबित हो जाता है।

अब सवाल ये है कि कर्मचारियों पर धौंस जमाने वाले अधिकारियों की प्रबंधन के सामने बोलती क्यों बंद हो जाती है? अधिकारी, प्रबंधन और सरकार को जमीनी हकीकत क्यों नहीं बताते? कभी न कभी तो अधिकारियों को हिम्मत दिखानी होगी अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब नए अधिकारियों को ही पोल पर चढ़कर फ्यूज ऑफ कॉल की शिकायत का समाधान करने के साथ ही विद्युत लाइन पर आ रही पेड़ों की शाखाओं की छंटाई और ट्रांसफार्मर में ऑयल भी भरना होगा।

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