भारतीय वैज्ञानिकों ने कार्बन (ग्राफीन ऑक्साइड) से बने एक ऐसे मिश्रित कागज को विकसित किया है जिसमे परिरक्षक रसायन (प्रिजर्वेटिव्स) मिलाए गए हैं और जिसे फलों के तोड़े जाने के बाद उनके शेल्फ जीवन को बढ़ाने में मदद करने के लिए रैपर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
फलों को परिरक्षकों (प्रिजर्वेटिव्स) के घोल में डुबाने की वर्तमान तकनीक जिसमें परिरक्षकों को अधिकतर फल द्वारा सोख लिया जाता है और जिससे उपभोक्ताओं के शरीर में उपचार न हो सकने वाली विषाक्तता (क्रोनिक टोक्सिसिटी) आ जाती है, इसके विपरीत इस नई प्रविधि में ये प्रिजर्वेटिव युक्त रैपर जरूरत पड़ने पर ही प्रिजर्वेटिव छोड़ते हैं। इन रैपर्स का पुन: भी उपयोग किया जा सकता है और जो वर्तमान तकनीक में संभव नहीं है।
फल बहुत जल्दी खराब होने लगते हैं और कुल उत्पादित फलों का 50 प्रतिशत बर्बाद हो ही जाता है और इससे उत्पादकों एवं विक्रेताओं को भारी नुकसान होता है। पारंपरिक रूप से फल संरक्षण राल, मोम या खाद्य बहुलक के साथ परिरक्षक की चढ़ाई गई परत (कोटिंग) पर निर्भर करता हैI जिससे ठीक न हो सकने वाली स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
इस समस्या का समाधान करने के लिए, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, मोहाली के डॉ. पी. एस विजयकुमार के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसे विकल्प की खोज की जो काम न आने वाले पदार्थों से बनाया जा सकता है और जिससे फल में परिरक्षकों का अवशोषण नहीं हो सकेगा।
इसके लिए सक्रिय किए गए ग्राफीन ऑक्साइड से भरे अणुओं को परिरक्षकों के साथ मिश्रित किया गया था। इस उच्च परिरक्षक-भारित (प्रिजर्वेटिव लोडेड) ग्रेफीन ऑक्साइड को जब फलों को लपेटने के लिए उपयोग किए जाने वाले कागज में डाला जाता है तो यह सुनिश्चित करता है कि फल में विषाक्त (जहरीले) अवशोषित न हो पाएं। लेकिन फल के अधिक पक जाने या रोगजनकों से संक्रमित हो जाने की स्थिति में साइट्रिक एसिड और ऑक्सालिक एसिड के स्राव से अम्लता बढ़ जाती है जिसके बाद ही फल के संरक्षण के लिए परिरक्षक उत्सर्जित होने शुरू हो जाते है। अन्यथा परिरक्षक कार्बन आवरण के भीतर ही बना रहता है। फल को डुबाने की विधि में परिरक्षक फल के साथ ही व्यर्थ हो जाएगा, वहीं फलों की अगली खेप के संरक्षण के लिए फल की खपत के बाद इन रैपरों का फिर से उपयोग किया जा सकता है।
इस अविशाक्त और पुन: प्रयोज्य रैपिंग पेपर को विकसित करने के लिए, टीम ने कार्बन मैट्रिक्स को परिरक्षक के साथ इनक्यूबेट होने दिया। कमरे के तापमान में 24 घंटे के लिए ऊष्मायन (इन्क्यूबेशन) के बाद, अतिरिक्त परिरक्षकों को हटाने के लिए प्राप्त पदार्थों को कई बार धोया गया था। अंत में, इस कार्बन-संरक्षक सम्मिश्रण को कागज में ढाला गया। यह प्रक्रिया विवरण ‘एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेस’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
डॉ. विजयकुमार के शब्दों में पहले से ही अपशिष्ट-से निर्मित कार्बन सामग्री को कार्बनिक अणु लोडिंग की भारी मात्रा को अपने में समाहित करने के लिए जाना जाता है, इसलिए परिरक्षक युक्त कार्बन तैयार किया गया है और उसे फलों के संरक्षण के लिए उपयोगी कागज में डाला गया है। कार्बनिक अणुओं को धारण करने के लिए कार्बन की क्षमता बढ़ाने से हमें इस उत्पाद को विकसित करने में मदद मिली है।
यह नया उत्पाद फलों की तोड़े जाने के बाद की जीवन अवधि (शेल्फ लाइफ) बढ़ाकर किसानों और खाद्य उद्योग को लाभ पहुंचा सकता है। फलों के लिए इस रैपर का उपयोग करने से यह भी सुनिश्चित होगा कि ग्राहक को स्वस्थ गुणवत्ता वाले फल मिले, क्योंकि हमने फिनोल सामग्री में सुधार देखा है। इस ग्राफीन फ्रूट रैपर के उत्पादन के लिए केवल जैविक पदार्थों (बायोमास) की ऊष्मा से उत्पादित कार्बन की आवश्यकता होती है, इसलिए इससे बायोमास की खपत बढने और रोजगार सृजन में भी लाभ होगा।