भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी है। वैसे तो रणछोड़ एक नाम है लेकिन रणछोड़ का अर्थ होता है- युद्ध का मैदान छोड़कर भागने वाला। पुराणों में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण दो बार अपनी युद्ध स्थली छोड़कर भाग आये थे। तब उनके प्रतिद्वंद्वी ने उन्हें रणछोड़ कहा था।
वो पौराणिक कथाएँ कुछ इस प्रकार है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर दिया तब कंस के ससुर जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण का वध करने का निश्चय कर के मथुरा नगरी में चढ़ाई कर दी। भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि मथुरा में युद्ध हुआ तो बेचारे बेकसूर नगरवासी भी मारे जाएंगे। इसीलिए उन्होंने मथुरा छोड़ने का निश्चय कर सभी जनों के संग वहाँ से चले आये और समुद्र के मध्य में द्वारिका नगरी बनाकर सभी को सुरक्षित किया। मथुरा नगरी से भाग जाने के कारण जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को रणछोड़ कहकर संबोधित किया।
जरासंध ने श्रीकृष्ण भगवान को पराजित करने के लिए कालयवन से मित्रता की, क्योंकि कालयवन को शिव जी द्वारा वरदान प्राप्त था कि उसे न तो कोई चंद्रवंशी मार सकता है न ही कोई सूर्यवंशी। न ही उसकी मृत्यु किसी हथियार से हो सकती है। इसीलिए जरासंध ने कालयवन को श्रीकृष्ण भगवान से युद्ध करने भेजा। इसीलिए जब कालयवन युद्ध करने आया तब श्रीकृष्ण भगवान वहाँ से भी भाग गए।
तब कालयवन ने भी भगवान को रणछोड़ कहकर उनका अट्टहास किया था। श्रीकृष्ण भगवान भागते-भागते एक गुफा में छिप गए, और वो जिस गुफा में जाकर छुपे, उसमें पहले से ही इक्ष्वाकु नरेश मांधाता के पुत्र और दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद गहरी नींद में सोए हुए थे। दरअसल उन्होंने असुरों से युद्ध कर देवताओं को जीत दिलाई थी। लगातार कई दिनों तक युद्ध करने की वजह से वह थक गए थे, इसलिए भगवान इंद्र ने उनसे सोने का आग्रह किया और उन्हें एक वरदान भी दिया, जिसके मुताबिक जो कोई भी उन्हें नींद से जगाएगा, वह जलकर भस्म हो जाएगा।
इसीलिए श्रीकृष्ण भगवान ने सोये हुए राजा मुचकुंद पर अपना पीताम्बर ओढ़ा दिया ताकि कालयवन जब भगवान का पीछा करते-करते वहाँ पहुँचे तो उसे लगे कि भगवान लेटे है और ऐसा ही हुआ, कालयवन ने राजा मुचकुंद पर प्रहार किया और जैसे ही राजा उठे उनके नेत्रों से एक अग्नि निकली जिससे कालयवन जलकर भस्म हो गया और इस प्रकार श्रीकृष्ण भगवान के अनेक नामों की सूची में रणछोड़ नाम भी जुड़ गया।
सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश