ग्रीष्म कालीन मूंग और उड़द के बढ़ते रकबे को देखते हुये इन फसलों को कीट-व्याधि से बचाने के उपाय किसानों को सुझाये गये हैं। जबलपुर के किसान कल्याण तथा कृषि विभाग के मुताबिक जायद में मूंग एवं उड़द की फसल पर कीटों और रोगों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन फसलों का औसत उत्पादन दस क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है, कीटों एवं रोगों से बचाव करने पर इसमें वृद्धि की जा सकती है।
उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास रवि आम्रवंशी के अनुसार कम लागत और अंतरफसल के रूप में अतिरिक्त आय के अलावा मूंग एवं उड़द की फसलें मिट्टी की उर्वरकता में सुधार करने में सहायक होती हैं। कम अवधि वाली ये दलहनी फसलें 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भूमि में करती हैं और कटाई के बाद 1.5 टन कार्बनिक पदार्थ को खेत में छोड़ जाती है। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। उन्होंने बताया कि मूंग एवं उड़द की अधिकतम पैदावार के लिये भूमि का उचित प्रबंधन, प्रारंभिक खरपतवार नियंत्रण संतुलित उर्वरक का उपयोग, क्रांतिक अवस्था में सिंचाई, समय पर का प्रभावी नियंत्रण तथा समय पर कटाई आदि लाभदायक होती है।
उपसंचालक कृषि के मुताबिक कुछ बीमारियां महामारी की स्थिति में मूंग एवं उड़द की उपज में गंभीर नुकसान का कारण बनती है। मूंग-उड़द की फसलों में अधिकतर सफेद मक्खी, फली छेदक इल्ली, माहू तथा बिहार रोमिल इल्ली का प्रकोप देखा जाता है। पत्तीभक्षक या इल्ली वर्गीय कीटों की रोकथाम के लिये लैम्बडासाइटेलोथ्रिन 10 ईसी का 0.5 मिलीलीटर, क्विनोल्फॉस 25 ईसी का 2.5 मिलीलीटर या फेनवेलरेट 20 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग कर नियंत्रित किया जा सकता है। मूंग एवं उड़द फसलों में माहू या सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटों का प्रकोप होने की स्थिति में 2 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का प्रति लीटर पानी में उपयोग कर 15-15 दिनों के अंतराल में रखे करें या थियामेथोक्साग 25 डब्ल्यू पी का 0.3 ग्राम लीटर या नीम तेल 5 प्रतिशत का 50 ग्राम प्रति लीटर का छिडकाव करना लाभप्रद होता है।
रवि आम्रवंशी ने बताया कि मूंग एवं उड़द की फसलों में बीमारियों का शीघ्र पता लगाना एकीकृत रोग प्रबंधन के दृष्टिकोण से बीमारियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिये महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि मूंग उड़द में पीला मोजेक, सकॉस्पोरा, पर्णदाग, एन्थक्नोज तथा भमूतिया रोग प्रमुख है। पीला मोजेक सफेट मक्खी द्वारा फैलता है। इसके नियंत्रण के लिये मैलाथियान 50 ईसी का 2 मिलीलीटर या ऑक्सीडेमेटोन मिथाइल 25 ईसी का 2 मिलीलीटर का छिडकाव 15-15 दिनों के अंतराल में करना फायदेमंद होता है। फफूंद से होने वाले रोग अल्टेरनारिया या सर्कोस्पोरा के नियंत्रण के लिए जिनेव 80 डब्लूपी या जिरम 80 डब्लूपी का 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी का 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी के साथ डाइथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर का आवश्यकतानुसार छिडकाव करना किफायती होता है। भभूतिया रोग के लक्षण दिखाई देने पर सल्फर 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से नियंत्रित किया जा सकता है।