चेन्नई (हि.स.)। ओरेगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें त्वचा की कोशिकाओं से शुक्राणु व अंडाणु पैदा कर उनके निषेचन से बच्चे की उत्पत्ति की जा सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तकनीक से न केवल बांझपन की समस्या का समाधान होगा बल्कि समलैंगिकों को भी संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त हो सकेगा। इसका मतलब बच्चा पैदा करने के लिए स्वस्थ पुरुष और स्त्री की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, सिर्फ त्वचा की कोशिका बच्चा पैदा करने के लिए पर्याप्त होगा।
साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार ओरेगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के इस खोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कोशिका के नाभिक को अलग कर उपस्थित गुणसूत्रों में बदलाव करके अंडाणु और शुक्राणु को अलग-अलग विकसित किया जाता है। फिर भ्रूण तैयार करने के लिए निषेचन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह सभी कार्य प्रयोगशाला में किया जाता है।
शोधकार्य की अगुवाई करने वाले वैज्ञानिक प्रोफेसर शौकरत मिवालीपॉव ने बताया कि वर्ष 1996 में इसी से मिलती-जुलती तकनीक के माध्यम से पहली बार विश्व में डॉली नामक भेड़ पैदा की गई थी। लेकिन, इस तकनीक में प्रयुक्त शुरुआती अनुसंधान भ्रूण तैयार करने में लंबी अवधि की आवश्यकता पड़ती थी, जबकि इस तकनीक में कोशिका के नाभिक से गुणसूत्र को अलग करने से भ्रूण बनने का समय काफी कम हो जाता है।
प्रोफेसर मिवालीपॉव के अनुसार-माता-पिता के अंदर पाए जाने वाले गुणसूत्रों का प्रयोग किया जाता है और इस प्रक्रिया में अर्धसूत्रीय कोशिका विभाजन होने से तैयार होने वाले शुक्राणु या अंडाणु में प्रयुक्त गुणसूत्र के एक जोड़े बनाए जाते हैं जिससे भ्रूण तैयार होता है। उनकी टीम वर्ष 2022 में पहली बार इस तकनीक को विकसित करने में सफलता हासिल की थी लेकिन भ्रूण विकसित करने की सफलता अब मिली है। उन्होंने इस तकनीक के बारे में लिखा है कि समूची दुनिया में इनविट्रो फर्टिलाइजेशन-आईवीएफ टेक्नोलॉजी पर बहुत सारा कार्य हो रहा है। लेकिन प्रयोगशाला में कोशिका के न्यूक्लियस से गुणसूत्र को अलग करने की प्रक्रिया पहली बार सफल हो पाई है, जो निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में त्वरित, सरल एवं सटीक तकनीक के रूप में लोगों तक पहुंचेगी।