दो ऋतुओं के संधिकाल में मनाए जाने वाले आदिशक्ति माँ दुर्गा की उपासना के पर्व नवरात्रि का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार भारत वर्ष चार नवरात्रि मनाई जाती हैं। जिनमें दो प्रकट नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि होती हैं।
पहली प्रकट नवरात्रि चैत्र नवरात्रि कही जाती है। यह चेत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। इस नवमी को बसन्तीय नवरात्रि भी कहा जाता है। दूसरी नवरात्रि अश्वनी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है, इसे शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। इन दोनों नवरात्रों में 6 माह का अंतर होता है।
नवरात्रि में पहले ही दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री हैं। इन्हें सती भी कहा जाता है। पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी इनकी शादी भगवान शिव से हुई है। माँ शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। इनके 2 हाथ हैं। एक हाथ में त्रिशूल है तथा दूसरे हाथ में कमल पुष्प है। माँ शैलपुत्री के दूसरे नाम पार्वती और हेमवती भी है।
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन हम माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं।वसाधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। इनके भी माँ शैलपुत्री की भांति दो हाथ हैं। एक हाथ एक हाथ में जप की माला है तथा दूसरे हाथ में कमंडल है। कुंडलिनी शक्ति जागृत करने के लिए माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप अनंत फल देने वाला है तथा इससे व्यक्ति के मानसिक शक्ति की वृद्धि होती है।
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं दिव्य शक्तियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। माँ के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ में जेल में विभिन्न प्रकार के शस्त्र एवं बाण विभूषित हैं। माँ का वाहन सिंह है तथा इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने की होती है।
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा देवी की उपासना होती है। साधक को इस दिन अत्यंत पवित्र होकर माँ की आराधना करना चाहिए। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की है। यह आदिशक्ति हैं। इनके शरीर की कांति एवं प्रभा सूर्य के समान तेज है। माँ की आठ भुजाएं हैं। इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। इनके 7 हाथों में क्रमश कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है तथा आठवें हाथ में सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
माँ का पांचवा रूप माँ स्कंदमाता है। इनकी पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। माँ मोक्ष का द्वार खोलने वाली परम सुखदाई है। माँ भगवान स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय की माता जी हैं कुमार कार्तिकेय प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। कुमार कार्तिकेय की माँ होने के कारण इन्हें माँ स्कंदमाता कहा जाता है। माँ की चार भुजाएं हैं उनके दाहिने तरफ की नीचे वाली भुजा जो ऊपर उठी हुई है उस में कमल पुष्प है। बायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर कि ओर उठी है। उसमें भी कमल पुष्प है। यह कमल के आसन पर विराजमान है तथा इनका भी वाहन सिंह है।
नवरात्र के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा होती है। यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक माँ कात्यायनी का उल्लेख है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि माँ परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई है। माँ कात्यायनी विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन की पुत्री थी। महिषासुर का संहार किया है। जय महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर अत्यंत बढ़ गया था, तब भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ने अपना-अपना तेज देकर महिषासुर के विनाश के लिए माँ कात्यायनी को उत्पन्न किया था। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है इनका वाहन सिंह है।
नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गाजी की सातवीं शक्ति माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। इन्हें माँ काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी आदि नाम से भी पुकारा जाता है। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस भूत प्रेत पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। यह सभी नकारात्मक ऊर्जा माँ के आने से पलायन कर जाती है। माँ का शरीर घने अंधकार की तरह काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। इनके तीन नेत्र हैं। माँ की नासिका से अग्नि की भयंकर ज्वाला निकलती है। इनका वाहन गर्दभ है। इनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिने तरफ की नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाला हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में कटार है।
नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है इनकी उपासना से भक्तों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण भी श्वेत है। महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन वृषभ है। उनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में बर मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह माँ सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं, इनकी उपासना के उपरांत सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं और सृष्टि में कुछ भी अगम में नहीं रह जाता। माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं। उनके हाथों में गदा, चक्र, शंख एवं कमल है । माँ का वाहन सिंह है तथा यह कमल के आसन पर आसीन हैं।
जय माँ शारदा
ज्योतिषाचार्य पंडित अनिल पांडेय
आसरा ज्योतिष, सागर
मध्य प्रदेश
विज्ञान क्या कहता है माँ दुर्गा की आराधना के पर्व नवरात्रि के बारे में