भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने आज लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) ने तीन उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है। अपनी दूसरी विकासात्मक उड़ान के तहत एसएसएलवी-डी2 यान ने ईओएस-07, जानुस-1 और आजादीसैट-2 उपग्रहों को 37 डिग्री के झुकाव के साथ उनकी लक्षित 450 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में स्थापित किया। इसने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले प्रक्षेपण स्थल से भारतीय समयानुसार 09:18 बजे उड़ान भरी और अपनी 15 मिनट की उड़ान के बाद इसने तीनों उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया।
एसएसएलवी ‘मांग पर प्रक्षेपण’ आधार पर पृथ्वी की निचली कक्षाओं में 500 किलोग्राम तक के छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो द्वारा विकसित नया लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान है। इसे क्रमशः तीन ठोस चरणों 87 टन, 7.7 टन और 4.5 टन के साथ संरूपित किया गया है। एसएसएलवी एक 34 मीटर लंबा, 2 मीटर व्यास वाला यान है, जिसका उत्थापन द्रव्यमान 120 टन है। लक्षित कक्षा में उपग्रह का प्रवेश एक तरल प्रणोदन-आधारित वेग ट्रिमिंग मॉड्यूल (वीटीएम) के जरिए कराया जाता है। एसएसएलवी छोटे, सूक्ष्म या नैनोउपग्रहों (10 से 500 किलोग्राम भार तक के) को 500 किलोमीटर की कक्षा में प्रक्षेपित करने में सक्षम है। यह कम लागत में अंतरिक्ष के लिए पहुंच, कम प्रतिवर्तन काल, कई उपग्रहों को समायोजित करने की सुविधा प्रदान करने के साथ न्यूनतम प्रक्षेपण अवसंरचना की मांग करता है।
इससे पहले 7 अगस्त, 2022 को एसएसएलवी-डी1 अपनी पहली विकासात्मक उड़ान में उपग्रहों को स्थापित करने से थोड़ा सा चूक गया था। एसएसएलवी-डी2 ने एसएसएलवी-डी1 उड़ान की कमियों का विश्लेषण करने वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा की गई सिफारिशों को लागू किया। एसएसएलवी-डी2 ने जिन तीन उपग्रहों को प्रक्षेपित किया, उनमें ईओएस-07 इसरो द्वारा तैयार किया गया 153.6 किलोग्राम का पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है। वहीं, जानुस-1, अमेरिकी कंपनी अंतारिस का 10.2 किलोग्राम वजन का एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन उपग्रह है। आजादीसैट-2, एक 8.8 किलोग्राम वजन का उपग्रह है, जिसे स्पेस किड्ज इंडिया ने पूरे भारत में 750 छात्राओं द्वारा विकसित विभिन्न वैज्ञानिक पेलोड को एकीकृत करके तैयार किया है।
आज के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत को एक नया प्रक्षेपण यान मिला है, जिसका उद्देश्य उद्योग के माध्यम से मांग के आधार पर प्रक्षेपित छोटे उपग्रहों का व्यावसायीकरण करना था। इसरो अंतरिक्ष में लघु उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की बढ़ती वैश्विक जरूरत को पूरा करने के लिए तैयार है।