बोरलॉग इंस्टीट्यूट आफ साउथ एशिया (बीसा), अन्तर्राष्ट्रीय फ़ार्म में जबलपुर जिले के किसानों का एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया।
बीसा के डायरेक्टर डॉ. रवि गोपाल सिंह ने प्रशिक्षार्थियों को बताया कि हमारी मिट्टी से कार्बन का प्रतिशत दिन प्रति दिन कम होता जा रहा है। हमारी मिट्टी सख्त हो रही है। उसे सांस लेना भी दुभर हो रहा है। ऐसे में उत्पादन के लिए आवश्यक तत्वों, खाद, बीज आदि का पोषण, संरक्षण वह कैसे करे? हमारी मिट्टी तेजी से बीमार हो रही है, यदि हमने समय रहते इसका इलाज नहीं किया तो भविष्य में हमारी जमीन उत्पादन से हमें वंचित कर देगी।
कार्बन का प्रतिशत बढ़ाने के लिए बिना जुताई की खेती ही इसका विकल्प है। उन्होंने बताया कि पराली तथा फसल के अवशेष खेत में ढकने से सूरज की रोशनी मिट्टी पर नहीं पड़ती है, इस खेती में सिद्धांत यही है कि सूरज को मिट्टी नहीं दिखना चाहिए, न ही मिट्टी को सूरज दिखना चाहिए।
उन्होंने इस प्रयोग की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सूर्य की रोशनी अथवा ऊर्जा से कार्बन का क्षरण होता है, अतः इसे हमें रोकना होगा। मिट्टी मे कार्बन की मात्रा बढ़ेगी तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और न खरपतवार बढ़ेगी और न ही बीमारियां लगेंगी। चींटी, झींगुर, कीड़े, जीव जंतु नमी में खाद का काम करेंगे, हमें मिट्टी के स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा, अन्यथा आगामी पीढ़ी अन्न की कमी से जूझेगी।
जबलपुर जिले के लगभग 70 प्रगतिशील कृषक प्रशिक्षार्थियों को बीसा फॉर्म का अवलोकन कराते हुए उन्होंने बताया की खेती मे जलवायु परिवर्तन का तेजी से असर होता है, यदि एक प्रतिशत टेम्प्रचर बढ़ता है तो उत्पादन मे 18 से 28 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है, इसे बिना जुताई की खेती से नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने इस खेती के गुर विस्तार से समझाये।
इस अवसर पर किसानों को ट्रैक्टर सीड ड्रिल से कतार से कतार तथा बीज से बीज की दूरी एवं बीज की गहराई निश्चित करने की सही तकनीक का प्रशिक्षण भी दिया गया।
बीसा फॉर्म के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विवेक सिंह, ललित शर्मा, महेश मस्क ने बिना जुताई वाली बोनी एवं जुताई के बाद बोनी वाले खेतों के अंतर को, प्रदर्शन फ़ार्म मे दिखाते हुए बताया की बिना जुताई के बोनी वाली फसल में उत्पादन का प्रतिशत बढ़ता है। किसान भाई कम से कम एक एकड़ मे स्वयं प्रयोग करके देखें।
भारत कृषक समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष केके अग्रवाल ने बीसा के डॉ. रवि गोपाल सिंह तथा वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त करते हुए, प्रशिक्षण को महत्वपूर्ण बताया तथा इस तरह के प्रशिक्षण नियमित आयोजित करते रहने का सुझाव दिया एवं बीसा फॉर्म के बीज किसानों को प्रमुखता से उपलब्ध कराने की मांग रखी।
इस अवसर पर रूपेंद्र पटेल, डॉ प्रकाश दुबे, जितेंद्र देसी, महेंद्र पटेल, रामदीन पटेल, अमित अग्रवाल, पंकज सिंघई, देवेंद्र पटेल, अनिल अग्रवाल, रामेश्वर अवस्थी, अंकित पटेल, संदीप पटेल, दामोदर पटेल, राघवेंद्र पचौरी, अनिल पटेल, अरविंद पटेल, डीएल पटेल, देवेंद्र शर्मा, उमाशंकर पटेल, केके दुबे, अंकित सिंघई आदि किसान उपस्थित थे।