देश में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि की पृष्ठभूमि में आयोजित एक बैठक में केंद्रीय विद्युत और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने देश में अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन (पारेषण) प्रणाली की प्रगति की समीक्षा की। अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली विद्युत आधिक्य से बिजली की कमी वाले क्षेत्रों में विद्युत के स्थानांतरण की सुविधा प्रदान करके नागरिकों की विद्युत जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
केंद्रीय विद्युत मंत्री ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50 प्रतिशत स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता का उल्लेख करते हुए कहा कि इसकी प्राप्ति के लिए संबंधित ट्रांसमिशन अवसंरचना का विकास महत्वपूर्ण है। 2030 तक, देश की स्थापित बिजली क्षमता 777 गीगावॉट से अधिक होने की संभावना है और पीक डिमांड 335 गीगावॉट तक पहुंचने की उम्मीद है। इसे देखते हुए, देश के विभिन्न हिस्सों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को देखते हुए 537 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता उत्पादन के लिए एक व्यापक पारेषण योजना तैयार की गई है। केंद्रीय विद्युत मंत्री ने यह योजना दिसंबर 2022 में जारी की थी।
अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली की समीक्षा में केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री सिंह ने योजना और बोली के चरणों के अंतर्गत परियोजनाओं की प्रगति और कार्यान्वयन के अधीन परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित किया। परियोजना निष्पादन में आ रही बाधाओं पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया, जिसके आधार पर केंद्रीय मंत्री ने परियोजना को शीघ्र पूरा करने के लिए मुद्दों को हल करने के निर्देश जारी किए।
केंद्रीय विद्युत मंत्री ने कहा कि पारेषण योजना में हरित हाइड्रोजन उत्पादन, बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पारंपरिक उत्पादन क्षमता में वृद्धि और तमिलनाडु व गुजरात में अपतटीय पवन उत्पादन जैसी उभरती आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा से समृद्ध प्रमुख राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के लिए अंतर-राज्य पारेषण योजना की समीक्षा की।
उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों के लिए अंतरराज्यीय और राज्य के भीतर पारेषण योजनाओं की भी विस्तार से समीक्षा की गई, ताकि 2030 में क्षेत्र की विद्युत मांग को पूरा किया जा सके और क्षेत्र में आगामी पनबिजली परियोजनाओं से विद्युत उत्पादन भी किया जा सके। केंद्रीय मंत्री ने निर्देश दिया कि पारेषण योजना गतिशील और क्षेत्र की बदलती आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होनी चाहिए। उन्होंने संबंधित विभागों से कहा कि पारेषण अवसंरचना का विकास उत्पादन से पहले होना चाहिए, ताकि बिजली उत्पादन में कोई बाधा न हो।