भारत में ड्रोन इकोसिस्टम का विस्तार करने का राष्ट्रीय मिशन जारी रखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपनी आईड्रोन पहल के तहत ड्रोन द्वारा ब्लड बैग की डिलीवरी करने का ट्रायल रन सफलतापूर्वक पूरा किया। आईएमसीआर, नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (एलएचएमसी), ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जीआईएमएस) और नोएडा स्थित जेपी इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (जेआईआईटी) के सहयोग भरे प्रयासों से देश में पहली बार एक बेहद महत्वपूर्ण वैलिडेशन स्टडी के हिस्से के तौर पर इस ट्रायल रन को अंजाम दिया गया है। इस उद्घाटन ट्रायल उड़ान ने विजुअल लाइन ऑफ साइट (वीएलओएस) में जीआईएमएस और एलएचएमसी से रक्त के पूरे नमूनों की 10 यूनिट्स का परिवहन किया।
एलएचएमसी और जीआईएमएस को ब्लड बैग्स की आपूर्ति और नमूनों के परीक्षण के केंद्र के रूप में शामिल किया गया है, वहीं जेआईआईटी ड्रोन उड़ानों के कार्यान्वयन केंद्र के रूप में काम कर रहा है। आईसीएमआर-मुख्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा इसके प्रोटोकॉल निर्माण, स्टडी डिजाइनिंग, कार्यान्वयन और परियोजना के समन्वय का काम किया जा रहा है। भारत में ड्रोन इकोसिस्टम का विस्तार करने के माननीय प्रधानमंत्री के विजन ने कृषि, रक्षा, आपदा राहत और स्वास्थ्य सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ड्रोन के अभिनव उपयोग के लिए एक आधार मुहैया किया है। ड्रोन नियम 2022 में छूट के साथ, इन क्षेत्रों में ड्रोन जैसी नई तकनीकों को शामिल करना अब शोधकर्ताओं और ड्रोन ऑपरेटरों के लिए आसान हो गया है।
आईसीएमआर स्वास्थ्य संबंधी उद्देश्यों के लिए ड्रोन का उपयोग करने में अग्रणी रहा है और उसने मणिपुर और नागालैंड के दूरदराज के क्षेत्रों में चिकित्सा आपूर्ति, टीके और दवाओं के वितरण का सफलतापूर्वक संचालन किया है। रक्त की ड्रोन आधारित डिलीवरी देश के अंदर अंतिम मील तक रक्त पहुंचाने में लगने वाले समय को कम कर देगी। इस कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आईएमसीआर के महानिदेशक डॉ राजीव बहल ने कहा कि “इस ‘आई-ड्रोन’ का उपयोग पहली बार आईसीएमआर द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान अगम्य क्षेत्रों में टीके पहुंचाने के लिए किया गया था। आज हम रक्त और रक्त से संबंधित ऐसे उत्पादों का परिवहन इससे कर रहे हैं, जिन्हें कम तापमान पर रखा जाना चाहिए। इस प्रयोग के बाद हमने पाया कि न केवल हम तापमान को बनाए रख सकते हैं, बल्कि परिवहन किए गए उत्पादों को भी कोई नुकसान नहीं हुआ है। हमने एंबुलेंस के माध्यम से एक और नमूना भेजा, और अगर दोनों तरीकों का उपयोग करके भेजे गए नमूनों में कोई अंतर नहीं होता है, तो फिर इस ड्रोन का उपयोग पूरे भारत में किया जाएगा।”
उन्होंने आगे कहा कि “चुनौती की मैपिंग करने को लेकर स्पष्टता और संभावित समाधानों की पहचान करने के ध्येय को अनुसंधान में स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करके, और मुख्यधारा में नवाचारों और प्रौद्योगिकियों को लाकर प्राप्त किया जा सकता है। डिजिटलीकरण, टीकों के कुशल निर्माण और तेज वितरण तंत्र के विकास के साथ, भारत ने एक साल में 90 प्रतिशत कवरेज हासिल कर ली है। प्रौद्योगिकी को ऐसा बढ़ावा देना एक ऐसा त्वरक है जो माननीय प्रधानमंत्री के विजन के अनुसार भारत को धीरे-धीरे एक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने की ओर धकेल रहा है।”
इस सत्यापन अभ्यास के दौरान वैज्ञानिकों ने रक्त और रक्त उत्पादों के समय पर वितरण को लेकर चुनौतियों की पहचान की, विशेष रूप से सुदूर क्षेत्रों और भारत के भीड़भाड़ वाले महानगरीय शहरों में वितरण को लेकर। उन्होंने ड्रोन की गतिविधि के कारण रक्त जैसे नाजुक शारीरिक तरल पदार्थ की गुणवत्ता और पूर्णता का आकलन किया। एलएचएमसी, जीआईएमएस और जेआईआईटी के जांचकर्ता आगे और ड्रोन उड़ानें संचालित करेंगे ताकि पैक्ड लाल रक्त कोशिकाओं, ताजा फ्रोज़न प्लाज्मा, प्लेटलेट्स की गुणवत्ता को इस अध्ययन में मान्य कर सकें। इस अध्ययन के निष्कर्ष रक्त उत्पादों पर ड्रोन परिवहन के प्रभाव की जांच के लिए भारत की तरफ से वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करेंगे। इस अध्ययन से ब्लड बैग्स और पदार्थों की डिलीवरी के लिए ड्रोन्स के उपयोग और उनकी व्यापक प्रयोज्यता को लेकर एसओपी बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके अलावा अध्ययन ये जवाब मुहैया कराएगा कि क्या देश के दूरस्थ स्थानों में तापमान संवेदनशील रक्त उत्पादों के परिवहन के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाए या नहीं।